जम्मू और कश्मीर के पहलगाम के बैसरन घाटी में बहुत बड़ा आतंकी हमला हुआ है. इस हमले में पर्यटकों को निशाना बनाया गया है, जिसमें 26 लोगों के मौत की आशंका है. हालांकि, अभी तक 16 मौत की पुष्टि हुई है. करीब 10 लोग गंभीर रूप से घायल हैं. इस हमले के तुरंत बाद गृहमंत्री अमित शाह ने दिल्ली में हाईलेवल बैठक बुलाई. जेद्दा पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे फोन पर बात की है. गृहमंत्री दिल्ली से श्रीनगर पहुंच चुके हैं. उनके साथ आईबी चीफ और गृहसचिव भी मौजूद हैं.
आंतरिक सुरक्षा सूत्रों ने इंडिया टुडे ग्रुप को बताया है कि पहलगाम में आतंकी हमला प्रतिबंधित आतंकी संगठनों लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद की संयुक्त साजिश का नतीजा है. पाकिस्तान के इशारे पर ये आतंकी संगठन छोटे-छोटे ‘हिट स्क्वॉड’ का इस्तेमाल कर आतंकी हमले कर रहे हैं. अमरनाथ यात्रा से पहले आज का हमला तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के बीच भय पैदा करने और उन्हें परेशान करने के लिए किया गया है. ऐसा हमला सोनमर्ग में भी किया गया था.
इस हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा के मुखौटा संगठन ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (टीआरएफ) ने ली है. टीआरएफ का ‘हिट स्क्वॉड’ और ‘फाल्कन स्क्वॉड’ आने वाले दिनों में कश्मीर में बड़ी चुनौती पेश कर सकता है. इस आतंकी मॉड्यूल को टारगेट किलिंग को अंजाम देने, जंगली और ऊंचे इलाकों में छिपने के लिए ट्रेंड किया गया है. सूत्रों ने बताया कि अपेक्षाकृत नए मॉड्यूल ‘फाल्कन स्क्वॉड’ को अत्याधुनिक हथियारों की बड़ी खेप मिली है, जिसका इस्तेमाल हमलों के लिए हो रहा है.
कुछ महीने पहले सुरक्षा बलों पर हमले से संबंधित अलर्ट भी जारी किया गया था. इंटेल ने सोशल मीडिया के माध्यम से अपने कैडर की भर्ती करने के लिए फाल्कन स्क्वॉड से संबंधित खुफिया सूचना दी थी. यह स्क्वॉड “हिट एंड रन” की रणनीति के साथ ‘ओवर ग्राउंड वर्कर्स’ के साथ काम करता है. सूत्रों के अनुसार, ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ लश्कर-ए-तैयबा का एक प्रॉक्सी ग्रुप है. ‘फाल्कन स्क्वॉड’ इसके मॉड्यूल में से एक है. लश्कर कश्मीर में टारगेट किलिंग के लिए सीधे आदेश दे रहा है.
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को हटाए जाने के बाद टीआरएफ एक ऑनलाइन यूनिट के रूप में शुरू हुआ था. माना जाता है कि टीआरएफ को बनाने का मकसद लश्कर जैसे आतंकी संगठनों को कवर देना है. बैकडोर से पाक सेना और आईएसआई इसकी मदद करती है. टीआरएफ ज़्यादातर लश्कर के फंडिंग चैनलों का इस्तेमाल करता है. गृह मंत्रालय ने मार्च में राज्यसभा को बताया था, “द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का एक मुखौटा संगठन है.
टीआरएफ साल 2019 में अस्तित्व में आया था. इस संगठन को बनाने की साजिश सरहद पार से रची गई थी. 14 फरवरी 2019 को पुलवामा में बड़ा आतंकी हमला हुआ था. इसके बाद दुनियाभर में पाकिस्तान बेनकाब हो गया. इस हमले को जैश-ए-मोहम्मद ने अंजाम दिया था. जब दुनियाभर से पाकिस्तान पर दबाव बढ़ा तो वो समझ गया कि आतंकी संगठनों के खिलाफ कुछ न कुछ करके दिखाना होगा. इसके बाद उसने इस तरह के संगठन बनाने की साजिश रची थी.
इससे भारत में आतंक भी फैल जाए और उसका नाम भी न आए. तब जाकर आईएसआई और पाकिस्तानी सेना ने लश्कर-ए-तैयबा के साथ मिलकर द रेजिस्टेंस फोर्स (टीआरएफ) बनाया था. साल 2022 की अपनी वार्षिक रिपोर्ट में, जम्मू-कश्मीर पुलिस ने कहा कि कश्मीर में सुरक्षा बलों द्वारा 90 से ज़्यादा ऑपरेशनों में 42 विदेशी नागरिकों सहित 172 आतंकवादी मारे गए. घाटी में मारे गए आतंकवादियों में से ज़्यादातर (108) द रेजिस्टेंस फ्रंट या लश्कर-ए-तैयबा के थे.
इसके साथ ही आतंकवादी समूहों में शामिल होने वाले 100 लोगों में से 74 टीआरएफ द्वारा भर्ती किए गए थे, जो पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी समूह से बढ़ते ख़तरे को दर्शाता है. टीआरएफ का नाम पहली बार साल 2020 में कुलगाम में हुए हत्याकांड के बाद सामने आया. उस समय बीजेपी कार्यकर्ता फिदा हुसैन, उमर राशिद बेग और उमर हाजम की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी. बताया जा रहा है टीआरएफ कश्मीर में फिर से वही दौर लाना चाहता है, जो 90 के दशक में था.
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