आतंकवाद पर चीन की दोगली नीति… शिंजियांग में इस्लामी आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई और UN में बना लश्कर-जैश आतंकियों की ढाल – china dual policy on terrorism support pakistan but counter islamic terrorism in own country ntcpan

उपमहाद्वीप पर कब्जा जमाने के चीन के विस्तारवादी मंसूबे किसी से छुपे नहीं हैं. एक तरफ वह भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान को हथियार और समर्थन देता है तो दूसरी तरफ बांग्लादेश को भी रिझाने की पूरी कोशिश करता है. आतंकवाद को लेकर भी चीन दोगली नीति के तहत काम करता आया है. अपने मुल्क में इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ चीन का रुख सख्त है. लेकिन भारत के दुश्मन आतंकियों को बचाने के लिए वह संयुक्त राष्ट्र में ढाल बनकर खड़ा हो जाता है.

पाकिस्तान को खुलकर समर्थन

पहलगाम हमले के बाद रविवार को चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री मोहम्मद इशाक डार से फोन पर बात की है और खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया. चीन ने पाकिस्तान की ओर से की जा रही पहलगाम हमले की निष्पक्ष जांच की मांग का समर्थन किया है, साथ ही कहा है कि वह हमले के बाद भारत की गतिविधियों पर नजर बनाए हुए है. पाकिस्तान ने इंटरनेशनल टीम से पहलगाम हमले की जांच कराने की मांग की है, जिसे अब चीन ने भी दोहराया है.

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पाकिस्तान को चीन का समर्थन कोई नहीं बात नहीं है और संयुक्त राष्ट्र से लेकर तमाम वैश्विक मंचों पर वह आतंकियों की पनाहगाह बन चुके इस मुल्क का समर्थन करता आया है. चीन ने मसूद अजहर के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रस्ताव का कई बार विरोध किया है और उसका मानना है कि जब तक पाकिस्तान इस पर सहमति नहीं देता, वह भारत के प्रस्ताव का समर्थन नहीं कर सकता. आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर पाकिस्तान में खुलेआम घूमता है, जो भारतीय संसद पर हमला, मुंबई अटैक और पुलवामा हमले का गुनहगार है.

वीटो लगाकर आतंकियों को बचाया

इसके अलावा चीन ने हाल ही में मसूद के भाई अब्दुल रऊफ अजहर को भारत की ओर से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 1267 आईएसआईएल और अलकायदा प्रतिबंधित सूची में शामिल करने के प्रस्ताव का विरोध किया था. रऊफ पर अमेरिका ने 2010 में प्रतिबंध लगाया था और अगस्त 2022 में भी चीन ने उसे अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित करने के भारत और अमेरिका के प्रस्ताव को वीटो लगाकर रोक दिया था. ऐसे कई मौके हैं जब चीन ने पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का समर्थन किया है और भारत के खिलाफ जाकर कदम उठाया है.

आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा प्रमुख और मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद के बेटे तल्हा सईद को आतंकियों की लिस्ट में डालने का विरोध भी चीन कर चुका है. संयुक्त राष्ट्र में भारत और अमेरिका के प्रस्ताव पर चीन ने वीटो का इस्तेमाल करते हुए रोक लगा दी थी. तल्हा सईद पर भारत सहित पश्चिमी देशों में जिहाद के नाम पर आतंक को बढ़ावा देने के आरोप हैं. भारत सरकार ने UAPA के प्रावधानों के तहत तल्हा सईद को आतंकी घोषित कर रखा है.

यही नहीं, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में भारत की स्थाई सदस्यता का भी चीन लगातार विरोध करता आया है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच में से चार स्थायी सदस्य भारत के साथ हैं. सिर्फ चीन ही है जो भारत को स्थायी सदस्य बनाने का विरोध करता है. चीन के अड़ंगे की वजह से ही भारत स्थायी सदस्य नहीं बन पा रहा है, जबकि भारत कई बार परिषद का अस्थाई सदस्य रह चुका है. 

अपने मुल्क में उइगर मुस्लिमों पर जुल्म

दूसरी तरफ चीन अपने शिंजियांग में उइगर मुस्लिमों को आतंकवादी मानती है और प्रांत में हुए हमलों के लिए इस्लामिक आतंकवाद को जिम्मेदार ठहराता है. चीन ने हाल ही में अलगाववादी उग्रवादी संगठन ‘ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट’ को आतंकी संगठनों की लिस्ट से हटाने पर अमेरिका की तीखी आलोचना की थी. चीन का तर्क है कि वैश्विक आतंकवाद से लड़ने के मामले में अमेरिका दोहरे मानक अपनाता है. हालांकि दूसरों के लिए खुद चीन का रवैया भी ऐसा ही है.

चीन को लगता है कि शिंजियांग का मुस्लिम समाज उनकी सरकार की गुलामी नहीं करता. इस वजह से चीन लगातार उइगर मुसलमावों पर शक करता रहा है और उनका उत्पीड़न कर रहा है. शिंजियांग में कई मस्जिदों को नष्ट किया गया. शिंजियांग में उइगर मुसलमानों को कैद करने के लिए चीन ने कई बड़े कैंप बनाए हैं. इन कैंपों में शिंजियांग के मुसलमानों का शोषण किया जाता है. मानवाधिकार समूहों का कहना है कि चीन ने बीते कुछ सालों में 10 लाख उइगर मुस्लिमों को जबरन डिटेन किया है.

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शिंजियांग में उइगर मुस्लिमों की इबादत पर भी बैन लगा रखा है. उइगर मुस्लिमों को जबरन हिरासत में रखने, बलात्कार, यातना, जबरन मजदूरी समेत उत्पीड़न की खबरें लगातार आती रहती हैं. चीन पर उइगर महिलाओं की जबरन नसबंदी और उइगर बच्चों को उनके परिवारों से अलग रखने के आरोप हैं. साथ ही चीन इन मुसलमानों का चीनीकरण करने की कोशिश में है, यानी चीन की संस्कृति में गैर चीनी समाजों और समूहों को शामिल करने की जुगच में लगा हुआ है.

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