पश्चिम बंगाल का सिलीगुड़ी कॉरिडोर! लगभग 22 किलोमीटर चौड़ा ये हिस्सा नॉर्थ-ईस्ट के आठ राज्यों को बाकी देश से जोड़ता है. गलियारा इसलिए भी संवेदनशील है, क्योंकि इससे तीन देशों बांग्लादेश, नेपाल और भूटान की सीमाएं सटी हैं. तीनों ही चीन की गुडबुक में आने की होड़ लगाए हुए हैं. कुल मिलाकर, चिकन नेक के आकार वाला हिस्सा फिलहाल देश का सबसे नाजुक भाग बना हुआ है. क्रॉस बॉर्डर आवाजाही और तस्करी कथित तौर पर यहां आम है.
तो क्या इंटरनेशनल बॉर्डर पार करना वाकई इतना आसान है?
क्या सिलीगुड़ी कॉरिडोर की पहरेदारी में जरा भी नरमी पूर्वोत्तर राज्यों के लिए जोखिम ला सकती है?
कैसे हैं अपनों से ज्यादा गैरमुल्कों के करीब इस चिकन नेक में हालात?
इन सवालों के जवाब तलाशने aajtak.in तीन दिन में तीनों मुल्कों की सीमाओं तक पहुंचा, और समझा कि 22 किलोमीटर चौड़े सिलीगुड़ी कॉरिडोर में ग्राउंड जीरो पर कैसी स्थिति है.
सफर कई किस्तों में पूरा हुआ, शुरुआत तेनजिंग नॉर्वे बस टर्मिनस से!
सिलीगुड़ी के इस बस अड्डे में नॉर्थ-ईस्ट के लगभग सारे राज्यों से बसें आती हैं. साथ ही यहां से काठमांडू, ढाका और भूटान के फुंटशोलिंग के लिए भी कनेक्टिविटी मिलेगी. सुबह के लगभग आठ बजे इस अड्डे पर मैं यात्री बनकर खड़ी हुई थी. एक के बाद एक कई एजेंट्स आए. दार्जिलिंग और गंगटोक जैसी सैर-सपाटे वाली जगहों पर कम कीमत पर पहुंचाने का ऑफर! स्टार, लेकिन सस्ते होटल में ठहराने का वादा.

तो कहां जाना है?
बांग्लादेश बॉर्डर.
ठीक है, ले चलेंगे.
मुझे वहां घूमना भी है!
हो जाएगा.
लेकिन मुझे बांग्ला नहीं आती!
कोई बात नहीं, हम तो रहेंगे.
एक दिक्कत है, मुझे बॉर्डर पार भी करना है…करा सकेंगे?
इस सवाल पर कुछेक ट्रैवल एजेंट्स कन्नी काटकर निकल जाते हैं. लौटने को हुई तो एक-एक करके वही एजेंट्स आने लगे.
डॉक्युमेंट्स हैं आपके पास?
नहीं. पासपोर्ट-वीजा तो नहीं. लेकिन इंडिया की ही हूं.
वो कोई बात नहीं. ले चलेंगे लेकिन टका (पैसा) ज्यादा लगेगा…
कोई रिस्क तो नहीं! आवाज में भरपूर डर घोलता हुआ सवाल.
अब रिस्क तो मैडम घर से निकलते ही है. लेकिन आप डरो मत, सब हो जाएगा. हम एक्सपर्ट हैं. आपके साथ और कौन-कौन होगा?
कोई नहीं होगा. मैं अकेली देखूंगी.
एजेंट अबकी बार गौर से देखते हुए हामी भरता है. मैं एक फोन करके आने का कहते हुए निकलती हूं कि तभी सुनाई पड़ता है – नारीर चेये भयंकर केउ नेइ… (औरतों से खतरनाक कुछ नहीं).

बेकागज-बेपहचान सीमा पार कराने का ठीक यही भरोसा हमें न्यू जलपाईगुड़ी रेलवे स्टेशन पर भी मिला. पैसे ज्यादा दें तो बिना कागज के सीमा पार कराने को राजी एजेंट्स.
लेकिन क्या इंटरनेशनल सीमाओं पर जांच-पड़ताल नहीं होती? अगर हां, तो कैसे ये सारा खेल चल रहा है. यही समझने के लिए हम नेपाल की तरफ निकलते हैं.
सड़क खाली मिले तो सिलीगुड़ी से नेपाल बॉर्डर करीब आधे घंटे का सफर.
हम नक्सलबाड़ी से होते हुए देश की आखिरी गांव ‘पानी टंकी’ के पास पहुंच चुके थे. सुबह का वक्त लेकिन गाड़ियों का रेला लगा हुआ था. सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) दस्तावेजों की जांच करता हुआ.

उस पार यानी नेपाल में काकरभिट्टा नाम का कस्बा. मैं गाड़ी से उतरकर देखती हूं. वहां से आने वाले रास्ते पर लंबा जाम. पूछने पर पता चला कि वहां के लोग सब्जी-भाजी से लेकर नमक-तेल भी यहीं से लेकर जाते हैं. इस रास्ते पर घूमने वाले कम, नेपाल से आने वाले व्यापारी ज्यादा हैं.पास ही एक और सड़क भी है, जहां से दो और तीन पहिया गाड़ियां जाती हैं. उस तरफ जितनी दूर नजर जाए, वहां तक जाम.
दस्तावेज दिखाने की हमारी बारी आती है. वे आधार की हार्ड कॉपी मांगते हैं. मैं बहाना बनाते हुए ईमेल खोलकर सॉफ्ट कॉपी दिखाने लगती हूं. धुकधुकी कि शायद रोका जाए या दरयाफ्त हो लेकिन सरसरी नजर डालते हुए हमें ग्रीन सिग्नल दे दिया गया.
अब हम काकरभिट्टा में हैं. एशियन हाईवे (एएच) सामने ही है, जो नेपाल की मुख्य सड़क है. भद्रपुर एयरपोर्ट यहां से सिर्फ 27 किलोमीटर दूर है.
इंटरनेशनल बॉर्डर चेकपोस्ट पार करते ही कई अहम इमारतें दिखेंगी. यहीं पर पैसेंजर क्लीयरेंस सेक्शन है. अगर आप गाड़ी भीतर ले जाना चाहें तो यहां एक पर्ची कटानी होगी. ऑनलाइन पेमेंट बंद. फोन बंद. ड्राइवर को गाड़ी क्लीयर करवाने की औपचारिकताएं पूरी करवाने के लिए छोड़कर हमने ई रिक्शा लिया और आगे बढ़ गए.
काकरभिट्टा पहुंचते ही एक चीज तुरंत दिखेगी, वो है पांत के पांत सजे हुए एनजीओ.

कुछ सौ मीटर से भी कम दूरी पर एक के बाद एक कई एनजीओ के शेल्टर बने हुए हैं. इनमें कुछ तीस साल पुराने संस्थान हैं तो कुछ ताजा बने हुए. सब के सब मानव तस्करी पर काम कर रहे. कई पोस्टर लगे हैं, जिनमें नेपाली में लिखा है कि बच्चों को बेचना अपराध है.
एक टीन शेड के नीचे कुछ लोग रजिस्टर लिए बैठे हुए. वे हर कमउम्र दिखती, डरी-सहमी, या ज्यादा बचकर चलती लड़की को रोकते और उसका डेटा लेते हैं. रजिस्टर पर नेपाली भाषा में नाम-पते, मोबाइल नंबर लिखे हुए हैं. इन्हीं में से एक सज्जन नव अभियान नेपाल में काम करते हैं.
ये शख्स दावा करता है कि इसी कतार में बनी पांचों संस्थाओं में से हरेक हर महीने में 10 से 15 केस पकड़ता है, जिसमें नाबालिग लड़कियां सीमा पार कराई जा रही हों. वे मानव तस्करी के बदलते पैटर्न के बारे में भी विस्तार से बताते हैं. मिलती-जुलती बातें हमें कई और जानकार देते हैं, साथ ही लौटकर आ चुकी पीड़िताओं से भी मिलाते हैं. (उनकी कहानी अगली किस्त में).
सामने ही एक छोटा बाजार, जहां पर्यटकों को बांधने के लिए सारा गुड़ जुटा हुआ है. छुटपुट सामान और सस्ते में करेंसी एक्सचेंज से लेकर मिनी कैसिनो तक.
मिनी कैसिनो यानी जुए के छोटे-मोटे अड्डे सीमावर्ती इलाकों में खूब दिखेंगे. हमारे यहां जुआ गैरकानूनी है. ऐसे में शौकीन या ब्लैक मनी को वाइट करने की मंशा वाले लोग यहां आते हैं. सस्ते होटलों या रिजॉर्ट में बने इन कैसिनोज पर नेपाल सरकार ने कई बार छापे मारे, लेकिन कुछ वक्त बाद ये दोबारा चल पड़ते हैं. कई बार यहां से लड़कियां छुड़ाई गईं, जो ह्यूमन ट्रैफिकिंग का शिकार हुई थीं.

यहीं पर चीन के तार भी जुड़ते हैं, जुए पर पाबंदी के चलते वहां से भी काफी लोग यहां आते रहते हैं. खुद नेपाली मीडिया में इस तरह की रिपोर्ट्स मिल जाएंगी. काकरभिट्टा में चीनियों की मौजूदगी भले कम रही, लेकिन पोखरा और काठमांडू जैसे शहरों में वे अक्सर मिनी कैसिनो के आसपास मंडराते दिखेंगे.
लेकिन इससे क्या खतरा?
दरअसल नेपाल वो ठिकाना बना हुआ है जहां दोनों देशों के लोग मिल सकते हैं और चाहें तो खतरनाक मंसूबों को अंजाम देकर आसानी से छिप या भाग भी सकते हैं. कम सुरक्षा जांचों की वजह से काठमांडू पर अक्सर ही अपराधियों की पनाहगाह बनने का आरोप रहा.
हम खुद ईमेल पर दिखाए आधार कार्ड के सहारे काफी अंदर तक जा चुके हैं और कहीं भी रोकटोक नहीं हुई.
ई-रिक्शा छोड़कर अब हम अपनी गाड़ी में बैठ चुके हैं. लगभग घंटे भर के सफर के बाद बाहुनडांगी आता है.
दार्जिलिंग से सटा ये गांव पोरस सीमा पर बसा हुआ है. यहां एसएसबी की कोई परमानेंट पोस्ट नहीं है. कोढ़ में खाज ये कि नेपाल की आर्म्ड पुलिस फोर्स की मौजूदगी भी इस पॉइंट पर नामालूम है. ऐसे में दोनों तरफ के लोग खेतों, या पगडंडियों के सहारे-सहारे सीमा पार कर सकते हैं. वैसे तो ये मानव तस्करी है, लेकिन इसकी आड़ में जासूसों या गलत इरादे वाले लोगों को भी आसानी से भेजा जा सकता है.
इंडो-नेपाल मामलों पर लगभग दो दशक से काम कर रहे सिलीगुड़ी के पत्रकार प्रशांत आचार्य अलग ही पॉइंट पर बात करते हैं.

वे कहते हैं- यहां एक मुश्किल एक जैसे चेहरों का होना भी है. पूर्वोत्तर के ज्यादातर लोग और नेपाल, बांग्लादेश, भूटान- लगभग सारे चेहरे-मोहरे एक से हैं. इससे काफी कन्फ्यूजन हो जाती है. कई बार शक होने पर भी कुछ किया नहीं जा सकता. जैसे, हाल-हाल के सालों में नॉर्थ-ईस्ट से काफी बड़ी आबादी सिलीगुड़ी या फिर बागडोगरा में बसने लगी.
नक्सलबाड़ी के पास नए-नए गांव बस चुके, जहां यहां के लोग हैं ही नहीं. वे बताते भी नहीं कि अपने बसे-बसाए घरों को छोड़कर वे यहां क्यों आ रहे हैं. क्या सीमा पर चीन कुछ ऐसा कर रहा है, जो उन्हें अनकंफर्टेबल कर रहा हो!
प्रशांत कहते हैं कि यहां बहुत से धार्मिक स्थल हैं, जहां धर्म की पढ़ाई के लिए भूटान या तिब्बत से लोग आ रहे हैं. इनमें कुछ मिलावट भी हो सकती है. लोग इन जगहों को यूज भी कर सकते हैं. चूंकि मामला संवेदनशील है, तो इनसे आम लोग तो पूछताछ कर नहीं सकते, लेकिन इनकी रेगुलर जांच की कोई व्यवस्था होनी चाहिए.
वे आगे कहते हैं- नेपाल और भूटान के साथ हमारा बड़ा बॉर्डर खुला हुआ है. बांग्लादेश में कुछ तारबंदी है, लेकिन हजारों किलोमीटर की सीमाओं पर हर जगह फोर्स की तैनाती नहीं हो सकती. नेपाल को लेकर भी डर है क्योंकि वो चीन के असर में है. दोनों के बीच ऐसे सॉफ्ट बॉर्डर हैं जो सेकंड्स में पार हो जाएं.

सीमाएं इतनी पोरस हैं कि एंट्री मिलने में कोई दिक्कत नहीं. कई बार लोग पशु चराने या खेती करने के बहाने या कामगारों के झुंड में मिलकर भी इधर से उधर हो जाते हैं. इसी वजह से यहां ह्यूमन ट्रैफिकिंग और ड्रग तस्करी भी तेजी से बढ़ी है. यहां से होते हुए ड्रग्स सारे नॉर्थ-ईस्ट में फैल जाता है, या फिर पूरे पश्चिम बंगाल में.
साल 2023 में एसएसबी ने भारत-नेपाल सीमा पर तस्करी के अलग-अलग मामलों में दो हजार से ज्यादा लोगों को पकड़ा. इनमें ड्रग्स, हथियार, सोना-चांदी और मानव तस्करी भी शामिल थे. ड्रग तस्करी इसमें टॉप पर रहा. काकरभिट्टा और बाहुनडांगी नशा आरपार करने के मेन रूट रहे, जहां से होते हुए सिंथेटिक नशा कोलकाता से होते हुए हाई-एंड कस्टमर्स के अलावा देश से कोने-कोने तक पहुंच रहा है.
नेपाल और भारत के बीच खुली सीमाओं की वजह से मानव तस्करी, ड्रग्स और मिनी कैसिनो के इस कॉकटेल से दो-चार होते हुए हम लौट पड़ते हैं.
अगला पड़ाव है- बांग्लादेश. अगले दिन सुबह 7 बजे के करीब हम सिलीगुड़ी से निकले और लगभग 20 मिनट के भीतर बांग्लादेश की सीमा पर थे.
ये फुलबाड़ी बॉर्डर है, जो उस तरफ बांग्लाबांध से सटा हुआ है. अहम ट्रेडिंग पॉइंट होने की वजह से यहां बीएसएफ और कस्टम्स की भारी तैनाती रहती है. सुबह-सुबह भी जवान मुस्तैद थे. हमें देखते ही टोकते हुए पास जाने से मना करते हैं.

एक दोस्ताना अंदाज में पूछताछ करता है. नाम-धाम जानने के बाद सलाह मिलती है- ‘यहां घूमा-घूमी मत कीजिए. रिट्रीट देखनी हो तो जरूर आइए. मंगलवार या शनिवार को.’ यह जाने का इशारा था. हम पीछे की तरफ लौटते हुए आखिरी गांव में घुस पड़ते हैं.
इंडो-बांग्ला चेकपोस्ट पर बसे गांव में सरसरी नजर देखने पर बमुश्किल 50 घर. ज्यादातर के दरवाजे बंद. थोड़े-बहुत लोग मेन सड़क पर दिख रहे हैं. चाय की टपरी पर बैठे हुए. बात करने की कोशिश के बीच बीएसएफ के जवान एक बार फिर आ जाते हैं.
आप लोग अब तक यहीं हैं! दोस्ताना अंदाज जरा सख्त लगता है.
जाते हुए भी चाय की चुस्कियां ले रहे एक शख्स से हम पूछ डालते हैं- बांग्लादेश के नए लीडर को आप जानते हैं?
नहीं. वो उस पार के लोग हैं. हमें क्या पता.
बॉर्डर पर रहते हैं, डर नहीं लगता! आजकल माहौल कुछ गड़बड़ है.
डर क्या लगेगा! यही पैदा हुए. यहीं बाल जर्द हो रहे हैं. कंधे उचकाते हुए शख्स चुस्कियां लेता है.
बेपरवाह दिखते लेकिन बेहद चौकन्ने जवाब देते इस शख्स से हम कुछ और पूछते, इससे पहले ही अल्लाह निगेहबान (अलविदा) कहते हुए वो पलट जाता है.

जाते हुए हम तस्वीर लेते हैं. चाय के अलावा मनी एक्सचेंज की दो-चार दुकानें. छोटा गांव, इतनी तगड़ी सिक्योरिटी कि चलना मुहाल. फिर यहां के लोग क्या करते हैं?
जवाब चाय के ठिए का मालिक देता है- कुछेक की ही खेती-बाड़ी है. बाकी लोग आती-जाती ट्रकों में सामान लोड-अनलोड करते हैं. कुछ कस्टम चेकपोस्ट में हैं और कुछ सिलीगुड़ी या बागडोगरा जाकर मजदूरी करते हैं.
छोटे स्तर की तस्करी भी यहां चलती है. जैसे कुछ पैसों के लिए लोगों को या सामान को यहां से वहां करना. हालांकि कड़ाई के चलते सीधे इस पॉइंट पर गड़बड़ी से लोग बचते हैं, इसके बाद भी बिना दस्तावेज घुसने की कोशिश करते बांग्लादेशियों के अलावा सीमा पर करोड़ों रुपए कीमत का सोना-चांदी जब्त किया गया.
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इसी फरवरी में बीएसएफ ने तीन करोड़ का गोल्ड पकड़ा था, जो एक मोटरसाइकिल के फ्यूल टैंक में छिपाया हुआ था. नशे और मवेशियों की तस्करी भी यहां आम है.
सीमा के बिल्कुल करीब ही महानंदा नदी गुजरती है. इसकी वजह से कई इलाकों में फेंसिंग नहीं. साथ ही आसपास घने चाय बागान और जंगल हैं, जहां छिपते-छिपाते रास्ता पार किया जा सकता है. बरसात में जब नदी उफनती है, बीएसएफ या एसएसबी दोनों की निगरानी कुछ हल्की पड़ जाती है, ऐसे में भी अवैध घुसपैठ चलती रहती है.
फुलबाड़ी बॉर्डर के पास ही नेशनल हाईवे-27 है. यही वो सड़क है, जो सिलीगुड़ी से होते हुए असम और बाकी पूर्वोत्तर को जोड़ती है.
रणनीतिक तौर पर बेहद संवेदनशील इस रास्ते पर सुरक्षा एजेंसियां हमेशा नजर रखती हैं. छोटी से छोटी चूक भी यहां भारी पड़ सकती है. स्ट्रैटेजिक लाइफलाइन होने की वजह से यहां ज्यादा देर तक रुकने या बेवजह तस्वीरें लेने की मनाही थी.

हम फांसीदेवा की तरफ बढ़ते हैं. जलपाईगुड़ी और दार्जिलिंग की सीमा पर बसा ये कस्बा महानंदा नदी के जरिए कुदरती तौर पर अलग होता है. चलते हुए इस गांव की कई कहानियां सुनाई पड़ती हैं. जैसे ब्रिटिश दौर में गांव में बागियों को फांसी दी जाती थी, इसलिए जगह का नाम फांसीदेवा पड़ गया. कहा जाता है कि वो पेड़ भी मौजूद है, जहां फांसियां मिलती थीं, हालांकि टूटे और कीचड़ भरे रास्तों की वजह से हम वहां तक नहीं पहुंच सके.
गांव की सीमा से ही भगवा झंडे दिखने लगते हैं. चौपाल पर बैठा एक शख्स बताता है कि रामवनमी की वजह से ये सारी तैयारियां की गई थीं.
तो यहां रामवनमी खूब धूमधाम से मनती है?
अभी तक तो नहीं. लेकिन अब कुछ बदलाव दिख रहा है. वैसे भी वो अपनी मनाते हैं तो हम क्यों डरें. अंदाज से धर्म का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं, लेकिन ये शख्स भी कैमरा पर कुछ बोलने को राजी नहीं. ये सेंसिटिव जगह है, बोलेंगे तो बवाल हो जाएगा.
सुबह का वक्त है, लिहाजा दुकान-मकान सब लगभग बंद दिखे. आगे ही फेंसिंग है. उस पार बहुत से लोग नदी में काम करते दिख रहे हैं. बाड़ के करीब जाते ही बीएसएफ का जवान तुरंत कड़कता है.
हम बस बांग्लादेशियों को देखने आए हैं!
हंसता हुआ जवाब आता है- देखने में तो हम-से ही हैं, लेकिन भीतर से बहुत खतरनाक हैं ये सब. अभी नदी में रेत निकाल रहे हैं, मौका मिलते ही आदमी का भेजा निकाल लेंगे.
साइकिल पर पेट्रोलिंग करता ये जवान कुछ नाराज भी लगता है.
ये फेंसिंग इतनी टूटी-फूटी दिख रही है, क्या काम अभी-अभी शुरू हुआ है?
हां, कुछ काम अभी हाल में चल रहा है. यहां नदी की वजह से बाड़बंदी नहीं हुई थी. गांववालों ने खुद मिलकर टीन-टप्पर से इसे घेर दिया. लेकिन ये उनको कहां रोक सकता है.

रोकने के लिए आप लोग तो हैं ही!
हम हैं तो लेकिन यहां वाले भी भीतरघाती है. जरा पैसों के लिए किसी को भी इस पार ले आएंगे. मुंह में आए कसैले थूक को जैसे भीतर निगलता हुआ ये जवान आगे कहता है- हम रात में 6 घंटे और दिन में 6 घंटे इसी साइकिल पर ड्यूटी करते हैं. पूरे चौकस. लेकिन मामला कब बिगड़ जाए, कुछ पता नहीं लगता. इनसे बचते हैं तो कुछ और हो जाता है.
पता चलता है कि जवान के गुस्से के पीछे हाल में हुई एक साथी की मौत है. यहां के एक जवान की गश्त के दौरान ही बिजली गिरने से मौत हो गई थी, इसके बाद से कई लोग हताश हैं.
पांच मिनट बात करने के बाद वो वापस निकल पड़ता है, चेताते हुए, देखिए. फोटो भी खींचिए लेकिन यहां से निकलते हुए सावधान रहिएगा, सांप की दुम पर पैर न पड़ जाए.
पास ही कई गांववाले खड़े हुए सुन रहे हैं. हंसी-हंसी में हम पूछते हैं- क्यों, आप लोग क्या पैसे लेकर घुसपैठ करवाते हैं?
‘नहीं. मैं तो नहीं करता.’ एक युवक तपाक से हाथ की ओर इशारा करता है. लाल धागा बंधी कलाई जैसे ईमानदारी का सबूत हो.
भीड़ बढ़ने लगी थी. क्यों आए हो, कहां से आए हो, जैसे सवालों से बचने के लिए हम गाड़ी में बैठ जाते हैं. पास ही नई फेंसिंग की तैयारियां चल रही हैं, खुदी हुई सड़कें गाद से भरी हुईं, लेकिन जरा कोशिश से ही उस पार पहुंचा जा सकता है. यानी इस पार होना भी उतना ही आसान होगा.
तीसरे और आखिरी दिन हम भूटान के लिए निकलते हैं. यहां एंट्री पाना कथित तौर पर उतना आसान नहीं अगर दस्तावेज न हों.
अपना वोटर कार्ड या पासपोर्ट रख लीजिएगा, बॉर्डर पर काम करता पत्रकार मित्र एक रात पहले ही कहता है. मेरे पास फिलहाल दोनों ही नहीं है, सिर्फ आधार है.
फिर तो एंट्री नहीं मिलेगी.
चलिए, पहुंचकर एक बार कोशिश करेंगे. अगर न मिली तो लौट आएंगे.

अगली सुबह हम जयगांव के रास्ते हैं, ये भूटान से सटा हमारा आखिरी गांव है. सिलिगुड़ी से इसकी दूरी करीब 170 किलोमीटर.
सड़क ठीक हो और व्यस्त न हो, तो चार से पांच घंटे लगेंगे. दरअसल इसी रूट पर कोरोनेशन ब्रिज पड़ेगा. बंगाल के दार्जिलिंग में तीस्ता नदी पर बना पुल सिलीगुड़ी को दार्जिलिंग, कलिम्पोंग, और सिक्किम से जोड़ता है. सिलीगुड़ी से सिक्किम का यही मेन रास्ता है. यानी इसे सिक्किम के लिए बाकी भारत से एकमात्र सड़क मार्ग भी मान सकते हैं. वैसे कुछ और सड़कें भी हैं, लेकिन वे या तो मुश्किल इलाकों से गुजरती हैं जहां मौसम खुला न हो, या फिर सैन्य रास्ते हैं.
पूरे रास्ते भूटान का कहीं कोई साइनबोर्ड नहीं, लेकिन भाषा और चेहरे-मोहरे बदल रहे हैं.
लगभग पांच घंटों में हम जयगांव पहुंच चुके हैं. फुंटशोलिंग इससे सटा हुआ भूटानी शहर है. दोनों के बीच कोई पक्का बॉर्डर तो नहीं, लेकिन सामने ही एसएसबी की चेकपोस्ट दिखेगी. यहां से भूटान जाने के लिए वीजा की जरूरत नहीं, लेकिन दस्तावेज जैसे वोटर आईडी या पासपोर्ट जरूरी हैं. आधार कार्ड लेकर मैं निकल पड़ती हूं. लंबी लाइन. पश्चिम बंगाल घूमने आए लोग भूटान देखने के भी इच्छुक. मुझे आधार पर ही एंट्री मिल जाती है, जबकि साथ गए लोग रोक दिए गए.
अपने तरफ की सिक्योरिटी पार करते ही फुंटशोलिंग रीजनल इमिग्रेशन ऑफिस पड़ेगा.
फुंटशोलिंग की तरफ से भूटान जाने वाले भारतीयों की इमिग्रेशन जांच यहीं होती है. भूटान होम मिनिस्ट्री के तहत आती ये जांच स्मूद तो है, लेकिन काफी सख्त. यहां भी आधार कार्ड दिखाने की कवायद नए सिरे से शुरू होती है.

लंबे गलियारे में चारों तरफ भूटान के राजसी परिवारों की तस्वीरें लगी हुईं. मौसम की मार से बचाने के लिए एसी और आरामदेह कुर्सियां.
पहली बार जा रही हैं? हामी भरने पर मुझे एक अलग लाइन में भेज दिया जाता है. लंबी कतार में काफी लोगों की छंटनियां होती हुईं. एक बार फिर मेरे सितारे अच्छे निकलते हैं.
भूटान का सीमावर्ती शहर फुंटशोलिंग सामने पसरा हुआ. इमिग्रेशन से निकलते ही ड्यूटी फ्री शॉप है. बहुत से भारतीय यहां सस्ती शराब खरीदने आते हैं. सामने ही जांगटोपेरी पार्क. अंग्रेजी और भूटानी में यहां कूड़ा करने पर सख्त कार्रवाई की चेतावनी लिखी हुई. पार्क के बीचोंबीच बौद्ध मंदिर, मंदिर के बाहर एक शख्स बड़े-बड़े दीप धो रहा है. मैं रुककर बात करना या फोटो लेना चाहती हूं, तभी एक महिला टूटी फूटी अंग्रेजी में कहती है- ये शोक में है, इसके घर में किसी मौत हुई है. वो जलाने के लिए दिये साफ कर रहा है, बात मत करो, न फोटो लो.
महिला सीमावर्ती गांव से ही है. मैं टटोलूं, उससे पहले पूछने लगती है- आप भारत से हैं! हामी भरने पर जोर-जोर से सिर हिलाती है, जैसे खुशी जता रही हो. फिर कई भारतीय सीरियल्स का नाम लेती है जो भूटान में खूब देखे जाते हैं.
तो आपको हिंदी आती है?
थोड़ी-थोड़ी. देखकर सीख ली. हम रील्स भी बनाते हैं हिंदी में.
तंग हिंदी में बात कर रही भूटानी महिला से हम पूछते हैं- पिछले कुछ वक्त में क्या भूटान में भारतीयों से दूरी बढ़ी है?
नहीं, ऐसा तो कुछ नहीं. हमारी पास ही एक दुकान है, वहां इंडिया हाउस से भी लोग आते हैं.

एकाध किलोमीटर पर ही इंडियन कॉन्सुलेट जनरल का दफ्तर है. स्थानीय लोग इसे इंडिया हाउस कहते हैं. टहलते हुए हम वहां भी पहुंचे लेकिन दफ्तर किसी वजह से बंद था.
आसपास रेजिडेंशियल बस्तियां बनी हुईं. साथ ही कई अहम दफ्तर और बड़े होटल भी यहां हैं, जिनके चलते तस्वीरें खींचता देख सीमित हिंदी में वहां के लोग अपनी नाखुशी जताते हुए.
क्या आगे जाने के लिए मुझे कोई और परमिट लेना होगा? कॉन्सुलेट बंद पाकर मैं दुकानदारों से समझना चाहती हूं.
हां. यहां से करीब 5 किलोमीटर पर एक चेकपोस्ट है, जो भूटान के अंदरुनी हिस्सों में एंट्री देगा. और अगर आप रात रुकने का सोच रही हों तो 1200 रुपए देने होंगे, साथ ही एक भूटानी गाइड भी लेना होगा. लेकिन आप इंडियन हो न, तो ज्यादा दिक्कत नहीं होगी, लोकल दुकानदार समझाता है.
भूटान में फिलहाल भारत या भारतीयों के लिए कोई दूरी नहीं दिखती, कम से कम स्थानीय स्तर पर.
दोनों देशों के बीच काफी अच्छे रिश्ते रहे, जिससे इनकी सीमाएं भी खुली और कम निगरानी वाली रहती आई हैं. इस देश से जुड़े हमारे बॉर्डर को लो-रिस्क माना जाता रहा, लेकिन यहीं से खतरा बढ़ता है. दरअसल फुंटशोलिंग दोनों देशों के बीच सबसे व्यस्त और क्रॉसिंग पॉइंट है. यहां से कमर्शियल लेनदेन भी होता है.
भूटान चूंकि लैंडलॉक्ड है, लिहाजा यह व्यापार के लिए कोलकाता या दूसरे भारतीय पोर्ट्स पर निर्भर रहा. इस गहमागहमी के बीच बिना पक्की जांच या अनिवार्य दस्तावेजों के भी आसानी से बॉर्डर पार हो सकता है. मिसाल के तौर पर, वहां आधार कार्ड मान्य नहीं, लेकिन इसी आइडेंटिटी कार्ड के साथ बिना किसी सवाल के हमें सीमा पार जाने दे दिया गया.
इस इमिग्रेशन चेक पोस्ट के अलावा कई गांव भी हैं, जहां भूटान-भारत की सीमाएं मिलती हैं. जंगल, पहाड़ियों और टी गार्डन से घिरे ये इलाके अवैध घुसपैठ का रास्ता बन सकते हैं.
बांग्लादेशी लीडर मोहम्मद यूनुस के बयान के बाद से सिलीगुड़ी कॉरिडोर लगातार चर्चा में है.
इसका संकरापन और तीन देशों से सीमाओं का सटा होना क्या किसी भी तरह का जोखिम ला सकता है, इसे समझने के लिए हमने भारत-भूटान बॉर्डर से रिपोर्टिंग करने वाले वरिष्ठ पत्रकार राजेश शर्मा से बात की, जो जयगांव से इंडिया भूटान फ्रेंडशिप एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं.

राजेश कहते हैं- भूटान चिकन नेक से कई घंटों की दूरी पर है. ये वैसे भी खतरा नहीं बन सकता, क्योंकि दोनों देशों के बीच काफी अच्छे संबंध रहे. यहां हिंदी फिल्में देखने का क्रेज बढ़ रहा है. हालांकि ये बात भी है कि कोविड के बाद से यहां सीमा सुरक्षा कुछ बढ़ाई गई. लेकिन इसमें भी संदेह करने की बात नहीं. ये सब इंटरनेशनल नियमों के तहत ही हो रहा है.
भूटान में भारतीयों के लिए कुछ नियम जरूर बढ़े, लेकिन भारत उसे लेकर अब भी उतना ही दोस्ताना है. वहां से लोग पढ़ने-लिखने और कामकाम के लिए भी हमारे यहां आ रहे हैं.
एक तरफ सब बढ़िया दिख रहा है, वहीं दूसरी तरफ दबी जबान में स्थानीय लोग भारत के लिए अपनी दूरी भी दिखा जाते हैं. खासकर नई पीढ़ी. फुंटशोलिंग में ही एक होटल के बाहर खड़ा युवक कहता है- ज्यादा क्या कहें, हमारे यहां नमक भी आपके यहां से आता है. जब हम पड़ोसी पर इतने डिपेंड हो जाएंगे तो अपने फैसले कैसे ले सकेंगे. हमसे बेहतर नेपाल है, जो मनचाही कर रहा है, भले ही लॉस हो या फायदा, लेकिन फैसला तो उसका है.
तो आपके किन फैसलों में भारतीय दखल है!
सवाल का जवाब दिए बिना युवक हाथों से अलविदा का इशारा करता चला जाता है.
(अगली किस्त में पढ़ें- इंटरनेशनल सीमाओं से घिरा सिलीगुड़ी कॉरिडोर कैसे क्रॉस बॉर्डर मानव तस्करी की बिसात बन गया. और इस सबका पूर्वोत्तर पर क्या असर हो सकता है.)











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