दुर्गम इलाका, कोई सुरक्षा नहीं: आतंकियों ने हमले के लिए पहलगाम के बैसरन को क्यों चुना? – Jammu Kashmir Pahalgam Baisaran Geography Overview Terrorist Attack NTC

पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों द्वारा मंगलवार को किए गए घातक हमले के लिए कश्मीर के रिसॉर्ट शहर पहलगाम में “मिनी स्विट्जरलैंड” के रूप में जानी जाने वाली बैसरन घाटी को ही टारगेट करने पर सवाल उठ रहे हैं. इसका जवाब इलाके के जियोग्राफी में छिपा है. आइए समझते हैं.

बैसरन, पहलगाम में एक बड़ा सा मैदान है, जो कि पहलगाम शहर के दक्षिण-पूर्व में स्थित है और नदियों, घने जंगलों और कीचड़ भरे इलाकों से गुजरने वाले सर्पीले ट्रेक मार्ग से पहुंचा जा सकता है. ट्रेक का बड़ा हिस्सा मोटर वाहन के लिए उपयुक्त नहीं है. मार्ग के कुछ हिस्से बेहद फिसलन वाले हैं और एक छोटी सी गलती पर्यटकों को गहरी खाई में गिरा सकती है.

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पहलगाम से पर्यटक पैदल और घोड़े पर घास के मैदानों तक पहुंचते हैं, इनके अलावा ATV (ऑल टेरेन व्हीकल) का भी इस्तेमाल किया जा सकता है, जो अभी कॉमर्शियल यूज में नहीं है.

एक स्वस्थ युवा को पहलगाम से बैसरन तक पैदल पहुंचने में लगभग एक घंटा लग सकता है – रास्ते में कोई या छोटा ब्रेक नहीं मिलता. घास का मैदान चारों तरफ से गहरी घाटियों से घिरा हुआ है, जिससे निर्धारित ट्रेक रूट के अलावा वहां पहुंचना मुश्किल हो जाता है.

हालांकि, बैसरन में स्टॉल चलाने वाले स्थानीय लोग अक्सर रास्ते के कुछ शुरुआती हिस्सों को कवर करने के लिए बाइक का इस्तेमाल करते हैं. ऐसे कठिन इलाके का मतलब है कि आपातकालीन प्रतिक्रियाकर्ताओं या सुरक्षा बलों को लोकप्रिय पर्यटक स्थल तक पहुंचने में कम से कम 30-40 मिनट लगेंगे.

भारी संख्या में पर्यटकों के आने के बावजूद, पहलगाम-बैसरन मार्ग पर कोई सुरक्षा तैनाती नहीं थी. मंगलवार के हमले के बाद घटनास्थल का दौरा करने वाले इंडिया टुडे के एक रिपोर्टर ने बताया कि 5.5 किलोमीटर के रास्ते पर एक भी पुलिस पिकेट मौजूद नहीं थी.

मुश्किलों के बावजूद, सैकड़ों पर्यटक हर दिन 30 एकड़ में फैले बैसरन आते हैं. सूत्रों ने इंडिया टुडे को बताया कि पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा के संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) से जुड़े हमलावरों ने अपने ओवरग्राउंड वर्करों की मदद से इलाके की रेकी की थी.

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सूत्रों ने बताया कि आतंकवादियों ने घने जंगलों में ठिकाने बनाए थे और घातक हमले करते समय बॉडी कैमरा पहने हुए थे. 90 के दशक की शुरुआत में कश्मीर में आतंकवादियों के आने के बाद से पर्यटकों को शायद ही कभी निशाना बनाया गया होगा.

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