भारत की खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (Raw) के पूर्व चीफ एएस दुलत एक बार फिर चर्चा में है. उनकी नई किताब The Chief Minister and the Spy को लेकर सियासी पारा चढ़ा हुआ है. इस किताब में दुलत ने फारूक अब्दुल्ला को लेकर बड़ा दावा किया है, जिस पर महबूबा मुफ्ती की प्रतिक्रिया से उमर अब्दुल्ला बिफर गए हैं. उमर ने दो टूक कह दिया है कि इस तरह तो क्या दुलत की पिछली किताब में महबूबा के पिता के बारे में लिखी गई बातें भी सच हैं?
हालांकि, उमर अब्दुल्ला ने यह नहीं बताया कि दुलत ने अपनी पिछली किताब में महबूबा मुफ्ती के पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद के बारे में क्या लिखा था. लेकिन यह स्पष्ट है कि उमर यहां एएस दुलत की 2015 में पब्लिश किताब Kashmir: The Vajpayee Years की बात कर रहे हैं.
दुलत की यह किताब 1990 के दशक में रॉ के चीफ और आईबी के विशेष निदेशक के तौर पर उनके अनुभवों पर आधारित हैं. किताब में वाजपेयी सरकार के दौरान कश्मीर में शांति स्थापित करने की कोशिशों, भारत-पाकिस्तान शांति पहल, कश्मीर में भारत सरकार की नीतियों, अलगाववादी आंदोलनों और खुफिया ऑपरेशन को लेकर कई दावे किए गए हैं.
इस किताब में दुलत ने दावा किया है कि 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान मुफ्ती मोहम्मद सईद ने उनसे कहा था कि पाकिस्तान ने कश्मीर में सभी को अपने प्रभाव में ले लिया है. वे सभी को वित्तीय मदद दे रहे हैं. उन्होंने हमसे भी संपर्क किया है.
दुलत ने किताब में दावा किया है कि अलगाववादी नेता सईद अली शाह गिलानी और मुफ्ती मोहम्मद सईद के बीच करीबी रिश्ता था. उनके अनुसार, गिलानी ने मुफ्ती को पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) बनाने में मदद की थी. इसके अलावा किताब में 1989 में मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबिया सईद के अपहरण का भी जिक्र है.
किताब में कहा गया है कि उस समय मुफ्ती सईद केंद्र सरकार में गृहमंत्री थे और जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) ने रुबिया का अपहरण कर लिया था और उसे छोड़ने के बदले पांच आतंकियों की रिहाई की मांग की थी. दुलत ने किताब में दावा किया कि उस समय फारूक अब्दुल्ला ने इसका विरोध किया था लेकिन चूंकि केंद्र सरकार (सरकार में सईद गृहमंत्री थे) ने आतंकियों को रिहा कर दिया था. यह फैसला कश्मीर में आतंक को बढ़ावा देने वाला साबित हुआ.
कैसे शुरू हुआ दुलत की किताब को लेकर विवाद?
पूर्व रॉ चीफ दुलत ने अपनी नई किताब The Chief Minister and the Spy में दावा किया है कि जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने 2019 में अनुच्छेद 370 को हटाने के केंद्र के फैसले को निजी तौर पर समर्थन किया था, जबकि सार्वजनिक रूप से उन्होंने इसे कश्मीर के साथ धोखा करार दिया था.
किताब के मुताबिक फारूक ने दुलत से कहा था कि हम मदद कर सकते थे, लेकिन हमें विश्वास में क्यों नहीं लिया गया? दुलत ने अपनी किताब में यह भी दावा किया कि फारूक और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला ने 370 हटाने से कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी, लेकिन क्या बात हुई इस बारे में किसी को जानकारी नहीं है.
इस पर फारूक ने कहा था कि अनुच्छेद 370 के हटाए जाने से पहले वह, उमर और सांसद हसनैन मसूदी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले थे और कश्मीर घाटी में बढ़ती फौज की तैनाती पर सवाल पूछा था, लेकिन मोदी ने कोई जवाब नहीं दिया. अगर उन्हें 370 के बारे में जानकारी होती, तो वे उसी वक्त अलार्म बजा देते. इस पर महबूबा मुफ्ती ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी.











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