22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में एक बड़ा आतंकी हमला हुआ, जिसमें 26 पर्यटकों की मौत हो गई. इस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया और भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़ा एक्शन लिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिक्योरिटी कैबिनेट (CCS) की आपात बैठक की अध्यक्षता करने के लिए अपनी विदेश यात्रा को बीच में ही रोक दिया, जिससे यह साबित होता है कि भारत इस मैटर को लेकर काफी सीरियस है.
CCS की बैठक में पाकिस्तान हाई कमिशन में अधिकारियों की क्षमता कम करने का फैसला लिया गया है. फिलहाल कमिशन में 55 अधिकारी काम कर रहे हैं, लेकिन इस संख्या को अब घटाकर 30 करने का आदेश दिया गया है. केंद्र सरकार का यह फैसला पाकिस्तान पर डिप्लोमेटिक दबाव बढ़ाने और आतंकवाद पर लगाम लगाने के लिए दबाव बढ़ाने के पांच-सूत्रीय रणनीति का हिस्सा है.
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भारत पाकिस्तानी उच्चायोग में कर्मचारियों की क्यों कर रहा कटौती?
भारत स्थित पाकिस्तान हाई कमिशन से अधिकारियों की क्षमता कम करने का फैसला कई मायनों में अहम है. भारत आरोप लगाता रहा है कि पाकिस्तानी राजनयिकों ने खुद को अपने वैध सरकारी कामों तक ही सीमित नहीं रखा है, बल्कि वे कभी-कभी जासूसी में संलिप्त पाए गए हैं.
भारत ने 2020 में पाकिस्तानी हाई कमिश्नर को समन कर इस मामले पर अपनी कड़ी आपत्ति जाहिर की थी, और अपने कामों में सुधार करने को कहा था. जासूसी के आरोपों में भारत पाकिस्तानी उच्चायोग के दो अधिकारियों को बाद में निष्कासित भी कर दिया था.
भारत आरोप लगाता रहा है कि पाकिस्तान आतंकवाद पर लगाम लगाने में विफल रहा है. पाकिस्तानी राजनयिक मिशन की क्षमता को नियंत्रित करके, भारत सीधे ऑपरेशनल बैंडविड्थ पर चोट करना चाहता है, जहां पिछली घटनाएं अगर देखी जाएं तो इसका इस्तेमाल खुफिया जानकारी जुटाने के लिए किया गया है. हालिया फैसला इसी दुरुपयोग को रोकने की रणनीति का हिस्सा हो सकता है.
भारत सरकार की तरफ से लिया गया फैसला बिना मिसाल के नहीं हैं. मसलन, भारत पाकिस्तान पर राजनयिक मिशनों को कम करने का आदेश पहले भी देता रहा है. 2001 के संसद अटैक और 2019 के पुलवामा अटैक के बाद भी इस तरह के फैसले लिए गए हैं, और तब भी इस तरह अधिकारियों की संख्या को सीमित किया गया है. जैसे कि 2020 में भारत ने पाकिस्तान से अपने अधिकारियों की संख्या 50% कम करने को कहा था.
उच्चायोग में कौन लोग हैं, और वे क्या करते हैं?
दिल्ली के चाणक्यपुरी में पाकिस्तानी उच्चायोग, भारत में मुख्य पाकिस्तानी राजनयिक मिशन है. इसमें भारत सरकार के संख्याबल कम करने के हालिया फैसले से पहले 55 अधिकारी काम कर रहे थे, जिन्हें अब 30 तक करने को कहा गया है. इसमें राजनयिक, प्रशासनिक अधिकारी, सैन्य सलाहकार और वाणिज्य दूतावास के अधिकारी शामिल होते हैं.
पॉलिटिकल डिप्लोमेसी: पाकिस्तानी हाई कमिशन भारत में रहकर आधिकारिक कम्युनिकेशन और दोनों देशों के बीच होने वाली वार्ताओं और राजनीतिक मामलों में शामिल या नजर रखता है.
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मिलिट्री एंड सिक्योरिटी: भारत स्थित पाकिस्तानी हाई कमिश्न में रक्षा, नौसेना और वायु सेना के सलाहकार, सेना-टू-सेना कम्युनिकेशंस की सुविधा प्रदान करते हैं, क्षेत्रीय सुरक्षा घटनाओं की निगरानी करते हैं – और इन्हीं पर पहले आरोप लगाए गए हैं कि ये कभी-कभी खुफिया जानकारी जुटाने में संलिप्त रहे हैं. भारत ने हालिया फैसले में इन अधिकारियों को खासतौर से भारत छोड़ने को कहा गया है.
काउंसलर वर्क: अब अगर भारतीय नागरिक पाकिस्तान जाते हैं, जैसा कि धार्मिक कार्यक्रमों के लिए भारतीय नागरिकों का आना-जाना रहता है, तो इसके लिए वीजा, पासपोर्ट और अन्य लीगल डॉक्यूमेंटेशन समेत भारत में रहने वाले या यात्रा करने वाले पाकिस्तानियों की मदद करता है.
राजनयिक कर्मचारियों को निष्कासित करके क्या मिलेगा?
अगर भारत पाकिस्तानी राजनयिक कर्मचारियों के एक बड़े हिस्से को वापस भेजता है, तो इसके प्रैक्टिकल और डिप्लोमेटिक दोनों प्रभाव होंगे. इस फैसले से पाकिस्तान के लिए भारत के साथ किसी तरह के समझौते, सुरक्षा मुद्दे पर चर्चा करने का चैनल सीमित हो जाएगा और उसके लिए अपने नागरिकों का समर्थन कमजोर पड़ेगा – लेकिन हालिया फैसले में भारत ने पाकिस्तानी नागरिकों की एंट्री पर बैन लगा दिया है.
हाई कमिशन की संख्या कम करने से वीजा काउंसलिंग सर्विसेज प्रभावित होंगी, और इसका दोनों देशों के लोगों पर असर पड़ सकता है. पाकिस्तानी सैन्य और रक्षा सलाहकारों को वापस भेजे जाने से क्राइसिस कम्युनिकेशन भी बाधित होगा, लेकिन भारत के लिए यह इसलिए अहम हो जाता है, क्योंकि इससे देश की खुफिया जानकारी देश से बाहर नहीं जाएगी..
भारत-पाकिस्तान संबंधों के लिए परिणाम
हाई कमिशन या किसी देश की एंबेसी में स्टाफ कटौती तब की जाती है जब दो मुल्कों के बीच द्विपक्षीय संबंध बेहद खराब हो जाते हैं. भारत-पाकिस्तान के संबंध पुलवामा हमले के बाद से ही खराब है, और तभी से दोनों मुल्कों में बातचीत कम रही है. भारत का यह फैसला पाकिस्तान को डिप्लोमेटिक रूप से आइसोलेट करने की रणनीति का हिस्सा है. इस फैसले से भारत की सिक्योरिटी को मजबूती मिलेगी, पाकिस्तान के कूटनीतिक एजेंडे कमजोर होंगे और फ्यूचर में शांति मुद्दों पर बातचीत करना भी मुश्किल होगा.
