चुनाव रणनीतिकार और अब जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर बिहार के चुनाव मैदान में उतरने की पूरी तैयार कर चुके हैं और इन दिनों पूरे राज्य में जनसमर्थन जुटाने की मुहिम में जुटे हुए हैं. इस बीच उन्होंने हमारे सहयोगी चैनल बिहार तक को एक्सक्लूसिव इंटरव्यू दिया है जिसमें उन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव से जुड़ी तैयारी से लेकर राजनीतिक और चुनौतियों पर विस्तार से बात की है.
प्रशांत किशोर से जब पूछा गया कि चुनाव लड़वाना आसान है या लड़ना आसान है तो इसके जवाब में उन्होंने कहा कि यहां पर भी मैं चुनाव लड़वा ही रहा, फर्क बस इतना ही है कि पहले मैं यह काम दल और नेताओं के लिए करता था. अब यह काम मैं बिहार की जनता के लिए कर रहा हूं. इसलिए कर रहा हूं कि देश का सबसे गरीब और पिछड़ा राज्य बिहार है. राजनीतिक विकल्प के अभाव में एक तरीके से राजनीतिक बंधुआ मजदूर बन गया है. दो दलों का है, दो फॉरमेशन का, जहां एक बहुत बड़ा तबका बदलाव की उम्मीद में बैठा हुआ है.
पीके से इंटरव्यू के दौरान दूसरा सवाल जब ये पूछा गया कि क्या विकल्प के अभाव में यहां के लोग दो गठबंधन के बीच ही चुनाव करने को मजबूर होते हैं, इसके जवाब में जनसुराज के संस्थापक ने कहा, लोग मजबूरी में चुनाव के समय उन्हीं में से एक को वोट देते हैं, अब आप यह कह सकते हैं कि बिहार में विकल्प क्यों नहीं रहा है? तो बिहार डिफिकल्ट स्टेट है. मैं अपने भाषणों में भी कहता हूं कि बिहार वह राज्य है जिसको देश के ज्यादातर दल और नेताओं ने न सुधर पाने वाला राज्य मानकर छोड़ दिया है. अगर मैं नहीं प्रयास करूंगा तो कौन प्रयास करेगा. इसी सोच के साथ आए हैं यहां कोई मंत्री, विधायक, एमएलए, एमपी बनने नहीं आए हैं.
प्रशांत किशोर से जब पूछा गया कि इस चुनाव में किसका पलड़ा भारी है और क्या एनडीए को ज्यादा सीटें मिल सकती हैं तो इसके जवाब में उन्होंने कहा, देखिए चुनाव को लेकर मैं एक बात तो आपको नत्थी के साथ लिखकर दे सकता हूं कि किसी भी हालत में नीतीश कुमार नवंबर के बाद मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे. बिहार में 20 साल में करीब करीब 15 साल एनडीए की सरकार रही है और बिहार में जो बदहाली है, जो परेशानी है उसको लेकर लोग वोट नहीं देंगे.
उन्होंने कहा, एनडीए का पलड़ा भारी मानने वाले लोग बिहार को समझ नहीं रहे हैं या बिहार की जमीनी हकीकत से वाकिफ नहीं हैं. जो लोग कहते हैं बिहार में वोट तो उन्हीं को पड़ेगा. जो लोग यह समझते हैं कि बिहार में विकास मुद्दा नहीं है, गवर्नेंस मुद्दा नहीं है, मुझे लगता है कि वह बिहार के लोगों की समझ, राजनीतिक समझ और उनके वोट देने के तरीके को गहराई से नहीं समझते हैं. बिहार की जनता इतनी मुर्ख नहीं है.
प्रशांत ने बताया क्यों छोड़ा नीतीश का साथ
जन सुराज के संस्थापक से जब ये पूछा गया कि आखिर वो कौन सी वजह थी जिससे उनका नीतीश कुमार से मोहभंग हो गया तो इसके जवाब में पीके ने कहा, यह सही सवाल है कि जिस नीतीश कुमार की मैंने मदद की थी, आज उनका मैं विरोध क्यों कर रहा हूं? 2015 के नीतीश कुमार, जिनकी मैंने मदद की थी और 2024-25 के नीतीश कुमार में जमीन आसमान का फर्क है. मुख्यमंत्री के तौर पर, प्रशासक के तौर पर, नेता के तौर पर जिस नीतीश कुमार की हमने मदद की थी, वह नीतीश कुमार की छवि यह थी कि यह आदमी बिहार में कुछ सुधार करने की कोशिश कर रहा है.
उन्होंने कहा, 2015 में नीतीश जी मुझसे मिलने आए थे. मेरे सुझाव पर नीतीश जी वापस मांझी जी को हटाकर खुद मुख्यमंत्री बने और मैंने उनको वादा किया था कि मैं आकर चुनाव लड़ने में मदद करूंगा. प्रशासक के तौर पर जो बिहार के लिए कुछ सुधार कर रहे थे मैं उस नीतीश कुमार के साथ था और जो आज है वो अलग हैं. जिस नीतीश कुमार का समर्थन किया था, उस वक्त उनमें राजनीतिक मर्यादा बची हुई थी, आज उस नीतीश कुमार का विरोध कर रहा हूं, जिसके लिए कुर्सी का प्रेम सब चीज से ऊपर है.
कन्हैया पर क्या बोले प्रशांत किशोर
जब उनसे बिहार में कांग्रेस की सक्रियता और कन्हैया कुमार को चेहरा बनाने की कोशिश को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, कांग्रेस 1990 में चुनाव हारने के बाद से यहां पर धीरे-धीरे खत्म हो गई है. यह जो यात्रा की बात कर रहे हैं, यह तो सिर्फ इनकी खींचतान है कि 70 सीट जो पिछली बार हमने गठबंधन में आरजेडी के साथ लिया था, वह कम न हो जाए तो थोड़ा कवायद कर रहे हैं कि भाई हम भी जिंदा हैं, हमारे भी कार्यकर्ता हैं.
पीके ने आगे कहा, बिहार में पिछले 40-50 साल में स्थिति को सुधारने के लिए कोई सकारात्मक स्ट्रक्चर्ड प्रयास हुआ नहीं है. मैंने आपको शुरू में ही कहा कि बिहार में अगर बदलाव चाहिए तो किसी के चुनाव जीतने हारने से बिहार नहीं बदलेगा. समाज और सरकार दोनों के स्तर पर बहुत बड़े प्रयास की जरूरत है. यहां आप प्रशांत किशोर का पूरा इंटरव्यू नीचे देख सकते हैं.
Leave a Reply