पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़े कदम उठाते हुए कई पाबांदियां लगा दीं. इनमें सिंधु जल संधि को निलंबित करना भी शामिल है. इसके कुछ दिनों बाद जल संसाधन मंत्री सीआर पाटिल ने कहा कि सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए योजना तैयार कर रही है कि पानी की एक भी बूंद पाकिस्तान न जाए. लेकिन सवाल उठता है कि ऐसा करने के लिए भारत कितना तैयार है और वास्तव में कितने बांधों की आवश्यकता होगी?
आजतक की ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस (OSINT) टीम के विश्लेषण के अनुसार, वर्तमान में पाकिस्तान में बहने वाले पानी को संग्रहीत करने के लिए भारत को भाखड़ा नांगल के आकार के कम से कम 22 बांधों की आवश्यकता होगी. भाखड़ा नांगल बांध सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) द्वारा शासित नदियों पर सबसे बड़ा बांध है.
सिंधु जल संधि भारत को पूर्वी नदियों (सतलज, ब्यास और रावी) और पाकिस्तान को सिंधु, चिनाब और झेलम (सामूहिक रूप से पश्चिमी नदियाँ) पर विशेष अधिकार देता है.
सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, पश्चिमी नदियों से हर साल औसतन 136 MAF (मिलियन एकड़-फुट) पानी बहता है. आसान भाषा में समझें तो 1 MAF पानी 10 लाख एकड़ ज़मीन या तीन दिल्ली-एनसीआर के बराबर क्षेत्र को 1-फुट गहरे पानी में डुबो सकता है. यदि पश्चिमी नदियों से बहने वाले पूरे पानी को रोक दिया जाए तो यह पूरे जम्मू और कश्मीर जो कि 42241 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ, को 13 फीट पानी के नीचे आ सकता है.
इस पानी को रोकने का सबसे व्यावहारिक तरीका बांध बनाना है ताकि सूखे मौसम में कृषि और बिजली उत्पादन के लिए पानी का इस्तेमाल किया जा सके. लेकिन संधि भारत को पाकिस्तान को आवंटित पश्चिमी नदियों पर बांध बनाने की अनुमति नहीं देती है. इसलिए, वर्तमान में इनमें से किसी भी नदी पर एक भी बांध मौजूद नहीं है. यहां तक कि “रन-ऑफ-द-रिवर” परियोजना जलाशयों में भी भारत 3.6 MAF से अधिक पानी नहीं रख सकता है.
पाकल दुल पहली भंडारण सुविधा है जिसे भारत किश्तवाड़ जिले में चेनाब नदी की एक सहायक नदी पर बना रहा है. इसमें 125.4 मिलियन क्यूबिक मीटर या 0.1 MAF पानी रखा जा सकता है.
वर्तमान में, जम्मू और कश्मीर के जलाशय सिंधु, चिनाब और झेलम के वार्षिक प्रवाह का एक प्रतिशत भी नहीं रख सकते हैं.
जम्मू और कश्मीर में पश्चिमी नदियों पर छह चालू हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजनाएं हैं. हालांकि उनमें से किसी को भी बांध के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है, लेकिन हर परियोजना अपने जलाशय में निरंतर संचालन के लिए कुछ पानी रखती है.
कुल मिलाकर, सलाल, किशनगंगा, बगलिहार, उरी, दुलहस्ती और निमू बाजगो बांध जलाशय इन नदियों में एक साल में बहने वाले पानी का सिर्फ़ 0.4 प्रतिशत ही रख पाते हैं. जम्मू-कश्मीर में निर्माणाधीन सभी जलविद्युत परियोजनाओं के पूरा हो जाने पर यह क्षमता 2 प्रतिशत तक बढ़ने की उम्मीद है.
रतले, पाकल दुल, क्वार और किरू जलविद्युत परियोजनाएं अभी निर्माणाधीन हैं. इनका निर्माण नवंबर 2021 और मई 2022 के बीच शुरू हुआ और अगले साल फरवरी और नवंबर के बीच पूरा होने की उम्मीद है.
कम से कम तीन और बांध, सावलकोट, बरसर, किरथाई-II की योजना बनाई गई है. एक बार पूरा हो जाने पर, इन बांधों का संयुक्त जल भंडारण पाकिस्तान में प्रवाह के समय पर एक बड़ा प्रभाव डालने की निर्विवाद क्षमता देगा, खासकर शुष्क अवधि के दौरान – रबी का मौसम, जैसा कि अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) के एक आकलन से पता चलता है.
पूर्वी नदियों पर बने सात प्रमुख बांध हर साल रावी, ब्यास और सतलुज नदियों में बहने वाले पानी का 50 प्रतिशत तक संग्रहित कर सकते हैं, जैसा कि डेटा से पता चलता है. अगर भारत बाढ़ की चेतावनी को रोकता है या मानसून के चरम मौसम के दौरान भाखड़ा बांध के स्लुइस गेट खोलने का फैसला करता है, तो कृषि में व्यवधान हो सकता है.
क्या पाकिस्तान में पानी का प्रवाह रोकना हमारे हित में है?
विशेषज्ञों का कहना है कि पश्चिमी नदियों पर बांध बनाने से भारी आर्थिक और पर्यावरणीय लागत आती है, साथ ही पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील जम्मू और कश्मीर में आपदाओं की संभावना भी रहती है.
गैर-लाभकारी संगठन साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल (एसएएनडीआरपी) के समन्वयक हिमांशु ठक्कर कहते हैं कि पश्चिमी नदियों पर कोई भी बड़ी भंडारण परियोजना शुरू करने से पहले हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि वे व्यवहार्य हों और हमारे लोगों, हमारे परिदृश्य और हमारे भविष्य के लिए फायदेमंद हों.
उन्होंने आजतक को बताया, “सबसे पहले, पश्चिमी नदियों पर भंडारण परियोजनाओं के निर्माण के लिए कोई उपयुक्त स्थान नहीं है. यदि ऐसे भंडारण स्थानों की पहचान की जाती है, तो सबसे पहले जिस नदी पर विचार किया जा सकता है, वह है चिनाब, जो अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण सबसे उपयुक्त है. इस बहुत ही नाजुक, आपदा प्रवण क्षेत्र में हमारे पास पहले से ही सबसे अधिक संख्या में मौजूदा, निर्माणाधीन और नियोजित परियोजनाएँ हैं. यह एक ऐसा स्थान भी है जहाँ विशेषज्ञों ने भूस्खलन, बाढ़, भूकंपीय गतिविधि और हिमनद झील के फटने से होने वाली बाढ़ के बड़े खतरों के बारे में चेतावनी दी है.”
उन्होंने बताया, “झेलम और सिंधु के मामले में, अगर हम अपने बांधों में कुछ पानी जमा करने में कामयाब भी हो जाते हैं, तो हम उसका क्या करेंगे? बांध के पानी का बड़े पैमाने पर सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है और यूटी की कृषि पहले से ही कई धाराओं और नदियों और इसी तरह के विकल्पों से समर्थित है.”
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