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भारत ‘नो फर्स्ट यूज’ का हिमायती जबकि PAK की पॉलिसी में ‘फुल स्पेक्ट्रम डिटरेंस’, क्या है ये जो पड़ोसी देश को बनाता है खतरनाक? – who controls nuclear weapons in pakistan ntcpmj

कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) के आतंकियों ने भारतीय पर्यटकों की हत्या कर दी. टीआरएफ के तार पाकिस्तान से जुड़े मानते हुए दिल्ली ने इस्लामाबाद पर कई सख्तियां की. जवाबी हमला बोलते हुए पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने आशंका जताई कि दोनों देशों के पास परमाणु ताकत है, और चीजें बिगड़ीं तो बड़ी मुश्किल आ सकती है. 

फिलहाल दुनिया के कई देश जंग से जूझ रहे हैं, और कमोबेश यही हालात भारत-पाकिस्तान के भी दिखने लगे. कयास लग रहे हैं कि पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत चुप नहीं बैठेगा, और कार्रवाई होने पर पाकिस्तान भी हार मानकर सीधे बैठ नहीं जाएगा. इसमें सबसे खतरनाक बात ये है कि पाकिस्तान के पास भी न्यूक्लियर ताकत है, और उसने नो फर्स्ट यूज (एनएफयू) पॉलिसी पर साइन भी नहीं किए हैं.

क्या है ये दोनों नीतियां

भारत की नीति एनएफयू की है. ये एक आधिकारिक एलान है जिसके तहत कोई देश ये वादा करता है कि वो दुश्मन पर न्यूक्लियर हथियारों का इस्तेमाल पहले नहीं करेगा, बल्कि केवल जवाबी हमला करेगा. वहीं पाकिस्तान इस तरह की कोई पॉलिसी नहीं मानता. यहां तक कि वो अक्सर ही अपने हथियारों की ढींग भी हांकता है. 

एनएफयू की बजाए पाकिस्तान ने फुल स्पेक्ट्रम डिटरेंस का अधिकार ले रखा है. अगर उसपर कोई हमला हो, तो वो तय कर सकता है कि जवाबी कार्रवाई उसी लेवल के हमले से होगी, या परमाणु अटैक भी हो सकता है. यानी छुटपुट हमले के जवाब में भी वो दुश्मन पर परमाणु बम गिरा दे, या बायो वॉर छेड़ दे, इसका विकल्प उसके पास है. 

इस्लामाबाद में न्यूक्लियर जखीरा किसके कंट्रोल में

किसी भी देश में न्यूक्लियर वेपन्स का कंट्रोल किसके पास है, ये बेहद गोपनीय रखा जाता है. इस्लामाबाद में भी ये हाइली क्लासिफाइड इंफॉर्मेशन के तहत आता है. हालांकि माना जाता है कि वहां परमाणु हथियारों का कंट्रोल नेशनल कमांड अथॉरिटी (एनसीए) के पास है, जिसे लीडर खुद प्रधानमंत्री होते हैं. उन्हें मिलाकर ये 10 सदस्यीय कमेटी होती है. 

साल 2000 में एनसीए की नींव रखी गई ताकि पाकिस्तान में बन और बढ़ रहे न्यूक्लियर भंडार पर नजर रखी जा सके. एनसीए में पीएम के अलावा राष्ट्रपति, गृह मंत्री, रक्षा मंत्री, आर्मी-नेवी-एयर कमांडर शामिल हैं. जंग की स्थिति बनने पर ये सारे लोग मिलकर किसी फैसले तक पहुंच सकते हैं, लेकिन उसपर अंतिम मुहर पीएम और प्रेसिडेंट लगाएंगे. परमाणु हथियारों की लॉन्चिंग की जिम्मेदारी सेना पर होगी. 

पहले सेना ही सब कुछ देखती-भालती

एनसीए के बनने से पहले पाकिस्तान में परमाणु जखीरे का पूरा लेखाजोखा सेना के पास हुआ करता था. काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशन्स की रिपोर्ट के अनुसार, चूंकि प्रोग्राम बहुत खुफिया था, लिहाजा उसमें काम करने वाले वैज्ञानिक भी अलग-थलग रहते थे, और उन्हें सरकार को कोई जवाब देने की जरूरत नहीं होती थी.

रिसर्च लैब में काम करने वाले लीड साइंटिस्ट अब्दुल कादिर खान, जिन्हें पाकिस्तानी परमाणु हथियारों का जनक भी कहा गया, वे किसी को भी जवाब देने को बाध्य नहीं थे. नतीजा ये हुआ कि वैज्ञानिक गड़बड़ियां करने लगे. यहां तक कि खान ने खुद स्वीकारा कि उन्होंने काफी सारी तकनीक दूसरे देशों को दी थी, वो भी सरकारी मंजूरी के बगैर. बाद में इस सारी दिक्कतों को दूर करके पाकिस्तानी सरकार ने इसपर कंट्रोल पा लिया, और सेना के पास लॉन्च करने का ही रिमोट रहा. 

दोनों में से किसके पास, कितने वेपन

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की साल 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के पास 172, जबकि पाकिस्तान के पास 170 वेपन्स हैं. भारत लंबी दूरी के हथियारों पर ज्यादा जोर दे रहा है, जिनमें चीन तक पहुंच सकने वाले हथियार भी शामिल हैं. वहीं पाकिस्तान का बड़ा फोकस भारत पर है. यही वजह है कि भारत के तुरंत बाद उसने भी न्यूक्लियर हथियार बना डाले. 

ऐसा देश, जहां परमाणु हथियारों पर इतनी छूट रही, और जिसने परमाणु अप्रसार संधि पर भी हामी नहीं दी है, क्या वहां जब चाहे परमाणु हमला किया जा सकता है?

पाकिस्तान के सेफ्टी प्रोसिजर के बारे में खास जानकारी नहीं. रिपोर्ट के अनुसार, विस्फोटकों को नॉन-न्यूक्लियर कंपोनेंट्स से अलग रखा गया है ताकि कोई भी इसका गलत इस्तेमाल न कर सके. 11 सितंबर हमले के बाद पाकिस्तान को लेकर कई बार ऐसे सवाल उठे. तब वहां की सरकार ने यूएन जनरल असेंबली को यही जवाब दिया था. 

क्या हथियारों के इस्तेमाल के लिए इंटरनेशनल मंजूरी 

नहीं. ये बेहद संवेदनशील लेकिन निजी मुद्दा है. अगर कोई देश ऐसा चाहे तो उसे बड़े मंच पर ये बोलने या मंजूरी लेने की जरूरत नहीं होगी. हालांकि ये एक्सट्रीम कदम है, जिसपर काबू के लिए कई समझौते हैं. जैसे यूएन का चार्टर कहता है कि परमाणु हमला शांति भंग करता है और बाकी देशों को भी जंग के लिए उकसा सकता है, जैसा दूसरे विश्व युद्ध में हुआ था. 

ऐसा करने से रोकने के लिए चार्टर में कई नियम बनाए गए. परमाणु अप्रसार संधि भी है, जो साठ के दशक में लागू हुई थी. इसका मकसद भी न्यूक्स के प्रसार को रोकना है. जिनेवा कन्वेंशन के तहत गैर-सैन्य इलाकों और नागरिकों पर परमाणु हमला करना प्रतिबंधित है. 

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