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सियाचिन में ऑपरेशन मेघदूत के 41 साल पूरे, पढ़ें- दुनिया के सबसे कठिन युद्धक्षेत्र में भारतीय सेना की गौरव गाथा – Siachen Operation Meghdoot completed 41 years indomitable saga Indian Army world toughest battlefield ntc

दुनिया के सबसे चुनौतीपूर्ण सैन्य अभियानों में से एक भारतीय सेना के ऑपरेशन मेघदूत ने सबसे दुर्गम और चुनौतीपूर्ण युद्ध क्षेत्र सियाचिन में 41 साल पूरे कर लिए हैं. ऑपरेशन मेघदूत दुनिया का अब तक का सबसे लंबा सैन्य अभियान है, जिसे 13 अप्रैल 1984 को शुरू किया गया था. पाकिस्तान के नापाक मंसूबों को नाकाम करने के लिए भारतीय सेना को सियाचिन की खड़ी और बर्फीली पहाड़ियों पर तैनात किया गया था. ये एक ऐसी जगह है जहां पहुंचना न सिर्फ एक चुनौती है, बल्कि यहां की प्रतिकूल परिस्थितियों में एक आम आदमी के लिए जीवित रहना भी मुश्किल है.

सियाचिन की बात करें तो ये पहाड़ 14000 से 22000 फीट की ऊंचाई पर पूरी तरह बर्फ से ढके हुए हैं. सियाचिन एक ग्लेशियर है, यानी बर्फ की एक मोटी चादर जो लगातार खिसकती रहती है. यहां एक जगह से दूसरी जगह जाना बेहद खतरनाक है. ग्लेशियरों के बीच में दरारें दिखाई नहीं देती हैं, जिसके कारण कई दुर्घटनाएं होती हैं. पिछले 41 सालों में भारतीय सेना के इस कठिन युद्ध क्षेत्र में 1158 से अधिक सैनिक शहीद हुए हैं. 

अगर तापमान की बात करें तो सियाचिन में दिन के समय अधिकतम तापमान -40 डिग्री होता है, इस भीषण और हाड़ कंपा देने वाली सर्दी में भी भारतीय सेना के जवान यहां ड्यूटी पर तैनात रहते हैं. भारतीय सेना की कठिन ट्रेनिंग और जवानों का मनोबल उन्हें दुश्मन के सामने बुलंद रखता है. यहां एक तैनाती के दौरान करीब 90 दिन तक ग्लेशियर में रहना पड़ता है, यानी जब सैनिक अपनी ट्रेनिंग के बाद ग्लेशियर पर जाते हैं, तो 90 दिनों के बाद ही नीचे आ पाते हैं. ऐसे में वे अपने परिवार से दूर रहकर तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए भारत की सीमाओं की रक्षा करते हैं. भारतीय सेना के साहस को सलाम करने के लिए 13 अप्रैल को सियाचिन दिवस मनाया जाता है. यहां मौजूद हर जवान करीब तीन महीने तक सेवा देता है, जहां जवान दुश्मनों पर कड़ी नजर रखते हैं, वहीं, बेरहम मौसम के कारण कई मुश्किलों और चुनौतियों का भी सामना करते हैं.

ऑपरेशन मेघदूत की शुरुआत

ऑपरेशन मेघदूत 13 अप्रैल 1984 को शुरू किया गया था. इस ऑपरेशन में भारतीय वायुसेना द्वारा भारतीय सेना के सैनिकों को हवाई मार्ग से ले जाना और उन्हें ग्लेशियर की चोटियों पर उतारना शामिल था. भले ही ये ऑपरेशन 1984 में शुरू हुआ था, लेकिन 1978 से ही इंडियन एयरफोर्स के हेलिकॉप्टर सियाचिन ग्लेशियर में काम कर रहे थे, चेतक हेलीकॉप्टर उड़ा रहे थे जो अक्टूबर 1978 में ग्लेशियर में उतरने वाला पहला IAF हेलिकॉप्टर था. 1984 तक लद्दाख के दुर्गम क्षेत्र में पाकिस्तान की आक्रामकता, सियाचिन में विदेशी पर्वतारोहण अभियानों की अनुमति देना चिंता का विषय बन गया था. क्षेत्र में पाकिस्तानी सैन्य कार्रवाई के बारे में खुफिया जानकारी मिलने के बाद भारत ने सियाचिन पर अपने दावे को वैध बनाने के पाकिस्तान के प्रयासों को विफल करने का फैसला किया. भारतीय सेना ने सैनिकों की तैनाती के साथ सियाचिन को सुरक्षित करने के लिए ऑपरेशन मेघदूत शुरू किया. इस प्रयास में अहम भूमिका निभाते हुए भारतीय वायुसेना के सामरिक और रणनीतिक एयरलिफ्टर्स, एएन-12, एएन-32 और आईएल-76 ने स्टोर और सैनिकों को पहुंचाया और ऊंचाई वाले क्षेत्रों में आपूर्ति की, जहां से एमआई-17, एमआई-8, चेतक और चीता हेलिकॉप्टरों ने ग्लेशियर पर घुमावदार ऊंचाइयों पर लोगों और सामग्री को पहुंचाया. जल्द ही, ग्लेशियर की रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चोटियों और दर्रों पर लगभग 300 सैनिक तैनात किए गए. जब ​​तक पाकिस्तानी सेना ने अपने सैनिकों को आगे बढ़ाकर प्रतिक्रिया की, तब तक भारतीय सेना रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण पर्वत चोटियों और दर्रों पर पहुंच चुकी थी, जिससे उसे सामरिक लाभ मिला. 

वायुसेना की निर्णायक भूमिका

IAF के हंटर विमान ने लेह में बहुत ज्यादा ऊंचाई वाले हवाई क्षेत्र से लड़ाकू अभियानों की शुरुआत की, सितंबर 1984 में नंबर 27 स्क्वाड्रन से हंटर्स की एक टुकड़ी ने ऑपरेशन शुरू किया. अगले कुछ वर्षों में हंटर्स ने लेह से कुल 700 से अधिक उड़ानें भरीं. जैसे-जैसे ग्लेशियर पर लड़ाकू विमानों की बढ़ती संख्या और हमले किए जाने लगे, इसने ग्लेशियर पर तैनात भारतीय सैनिकों के लिए मनोबल बढ़ाने का काम किया. साथ ही विरोधी को एक सख्त संदेश भेजा. भारतीय वायुसेना ने 2009 में ग्लेशियर में उड़ान भरने के लिए चीतल हेलिकॉप्टरों को भी शामिल किया. चीतल एक चीता हेलिकॉप्टर है, जिसे TM 333 2M2 इंजन के साथ तैयार किया गया है. वर्तमान में भारतीय वायुसेना के लगभग सभी विमान जिनमें राफेल, सुखोई-30एमकेआई, चिनूक, अपाचे, एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर (एएलएच) एमके III और एमके IV, लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर (एलसीएच) प्रचंड, मिग-29, मिराज-2000, सी-17, सी-130 जे, आईएल-76 और एएन-32 शामिल हैं, ऑपरेशन मेघदूत के समर्थन में काम कर रहे हैं.

तकनीकी और आधारभूत सुविधाओं का विस्तार

पिछले पांच वर्षों में सियाचिन में सेना की ताकत और सुविधा बढ़ाने के लिए कई अहम कदम उठाए गए हैं. ATV (ऑल-टेरेन व्हीकल) और ATV ब्रिज से मूवमेंट आसान हुआ है. Dyneema रोप्स और केबलवे सिस्टम से दूरस्थ पोस्ट तक रसद पहुंचती है. हेलिकॉप्टरों और ड्रोनों से भारी सामान भी अब ऊंचाई तक पहुंचाया जा सकता है. सैनिकों को अब विशेष कपड़े, पर्वतीय उपकरण और उन्नत राशन मिलते हैं.

संचार और स्वास्थ्य सेवाओं में क्रांति

सियाचिन में VSAT तकनीक से इंटरनेट और डेटा कनेक्टिविटी संभव हो पाई है. ISRO की मदद से टेलीमेडिसिन की सुविधा शुरू हुई है. सैनिकों को अब वेदर ट्रैकिंग डिवाइस से मौसम की जानकारी पहले से मिलती है. मोबाइल नेटवर्क में सुधार से सैनिक परिवार से जुड़े रहते हैं.
 

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