1965, 1971, करगिल तीन युद्धों में भी बंद नहीं हुआ पानी…’सिंधु स्ट्राइक’ से PAK को होंगे कैसे-कैसे नुकसान? – India hold Indus Water Treaty after Pahalgam terror attack What it signifies and consequences ntcpan

पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देना शुरू कर दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई सुरक्षा मामलों से जुड़ी कैबिनेट कमेटी की बैठक में कड़े फैसले लिए गए हैं, जिसमें सिंधु जल संधि को स्थगित करने का फैसला भी शामिल है. भारत की ओर से पाकिस्तान पर की गई इस ‘वाटर स्ट्राइक’ से पड़ोसी मुल्क बूंद-बूंद को तरस जाएगा.

6 दशक पुराना सिंधु समझौता

भारत-पाकिस्तान के बीच साल 1960 से सिंधु जल समझौता लागू है. सिंधु नदी को पाकिस्तान की लाइफ लाइन माना जाता है. करीब 21 करोड़ से ज्यादा की आबादी पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए सिंधु और उसकी चार सहायक नदियों पर निर्भर रहती है. पाकिस्तान की 80 फीसदी खेती लायक भूमि, जो की करीब 16 मिलियन हेक्टेयर है, सिंधु नदी के ही पानी से सिंचित होती है. 

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पाकिस्तान में सिंधु और सहायक नदियों के पानी का 90 फीसदी हिस्सा सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जिसके बिना पड़ोसी मुल्क के किसानों की कमर टूट जाएगी. इसके अलावा सिंधु और उसकी सहायक नदियों पर पाकिस्तान के प्रमुख शहर कराची, लाहौर, मुल्तान निर्भर रहते हैं. यही नहीं, तरबेला और मंगला जैसे पॉवर प्रोजेक्ट भी इन नदियों के सहारे की चल रहे हैं. 

पाकिस्तान बूंद-बूंद को तरसेगा

सिंधु जल समझौते के स्थगित होने से पाकिस्तान में खाद्य उत्पादन में गिरावट आ सकती है, जिससे लाखों लोगों के सामने भूख का संकट पैदा हो सकता है. पाकिस्तान की शहरी वाटर सप्लाई रुक जाएगी, जिससे वहां अशांति फैल जाएगी. बिजली उत्पादन ठप होने की आशंका जताई जा रही है और इससे पाकिस्तान के कई शहरों पर ब्लैकआउट का खतरा मंडरा रहा है. 

पाकिस्तान में सिंधु, चिनाब, बोलन, झेलम, रावी समेत कई नदियां बहती हैं. लेकिन सिंधु नदी पड़ोसी देश की लाइफ लाइन है. सिंधु नदी तिब्बत के मानसरोवर के करीब सिन-का-बाब जलधारा से निकलती है और यहां से तिब्बत और कश्मीर के बीच बहती है. नदी का ज्यादातर हिस्सा पाकिस्तान को ही मिलता है. साथ ही घरों तक पहुंचने वाले पीने के पानी से लेकर खेतों की सिंचाई के लिए पाकिस्तान इसी नदी के पानी पर निर्भर रहता है. इसके अलावा पाकिस्तान की कई जल विद्युत परियोजनाओं के लिए सिंधु नदी काफी अहम है. यही वजह है कि इसे पाकिस्तान में राष्ट्रीय नदी का भी दर्जा हासिल है. अब भारत के साथ समझौता रुकने ने पाकिस्तान की गंभीर जल संकट से गुजरना पड़ सकता है.

अब तक का सबसे बड़ा एक्शन

भारत ने 1965 की जंग में भी पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि स्थगित नहीं की थी, जबकि उस वक्त भारतीय सेना लाहौर तक कब्जा करने के लिए पहुंच चुकी थी. इस युद्ध में पहली बार दोनों देशों की वायुसेना ने हिस्सा लिया और संयुक्त राष्ट्र की दखल के बाद करीब 20 दिन तक चली इस जंग को खत्म किया गया. भारतीय सेना के शौर्य है आगे पाकिस्तान ने घुटने टेक दिए थे.

इसके बाद 1971 की जंग में तो भारत ने पाकिस्तान के दो टुकड़े ही कर दिए और बांग्लादेश का जन्म हुआ. तब पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में हालात इतने बिगड़ गए कि पाकिस्तान ने अपने ही लोगों के खिलाफ सेना उतार दी थी. पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान के निवासियों पर जुल्म किए और इस पर भारत ने 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान की सेना पर हवाई हमला कर दिया. इसका अंजाम ये हुआ कि आखिर में पाकिस्तानी सेना ने हारकर सरेंडर कर दिया और पूर्वी पाकिस्तान कटकर एक नए देश बांग्लादेश के रूप में स्थापित हुआ. इन हालातों में भी भारत ने पाकिस्तान के साथ सिंधु संधि स्थगित नहीं की थी.

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इसके बाद दौर आया 1999 के कारगिल युद्ध का, जब पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर पर कब्जे की अपनी नापाक कोशिश को फिर से अंजाम दिया. लेकिन भारत ने ‘ऑपरेशन विजय’ चलाकर पाकिस्तानी सेना और घुसपैठियों को अपनी जमीन से खदेड़ दिया. इसके बाद पुलवामा और उरी अटैक के बाद भी भारत ने अपना धैर्य बनाए रखा और पाकिस्तान के साथ चली आ रही इस जल संधि को स्थगित नहीं किया था. हालांकि भारत ने दूसरे तरीके से पाकिस्तान को हर बार तीखा जवाब जरूर दिया है.

क्या है सिंधु जल समझौता

सिंधु जल समझौता तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तानी सेना के जनरल अयूब खान के बीच कराची में सितंबर 1960 में हुआ था. छह दशक पहले हुई सिंधु जल संधि के तहत भारत को सिंधु और उसकी सहायक नदियों से 19 फीसदी पानी मिलता है. पाकिस्तान को करीब 80 फीसदी पानी मिलता है. भारत अपने हिस्से में से भी करीब 90 फीसदी पानी ही इस्तेमाल करता है. साल 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु घाटी को 6 नदियों में विभाजित करते हुए इस समझौते पर साइन किए गए थे. 

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इस समझौते के तहत दोनो देशों के बीच हर साल सिंधु जल आयोग की बैठक होती है और आखिरी बैठक मई 2022 में नई दिल्ली में हुई थी. भारत-पाकिस्तान के बीच पूर्वी नदियों पर भारत का अधिकार है जबकि पश्चिमी नदियों को पाकिस्तान के हक में दे दिया गया. इस समझौते की मध्यस्थता विश्व बैंक ने की थी. सिंधु जल प्रणाली में मुख्य नदी के साथ-साथ पांच सहायक नदियां भी शामिल हैं. इनमें रावी, ब्यास, सतलज, झेलम और चिनाब शामिल हैं. ये नदियां सिंधु नदी के बाएं बहती है. रावी, ब्यास और सतलुज को पूर्वी नदियां जबकि जबकि चिनाब, झेलम और सिंधु को पश्चिमी नदियां कहा जाता है. इन नदियों का पानी भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए अहम है.

कैसे सुझलते हैं सिंधु विवाद

संधि के मुताबिक़ सिंधु, झेलम और चिनाब को पश्चिमी नदियां बताते हुए इनका पानी पाकिस्तान के लिए तय किया गया. जबकि रावी, ब्यास और सतलुज को पूर्वी नदियां बताते हुए इनका पानी भारत के लिए तय किया गया. भारत कुछ अपवादों को छोड़कर पूर्वी नदियों के पानी का पूरा इस्तेमाल कर सकता है. वहीं पश्चिमी नदियों के पानी का कुछ हिस्सा भी भारत को दिया जाता है और इसका इस्तेमाल बिजली बनाने से लेकर सिंचाई के काम में होता है.

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सिंधु जल संधि से जुड़े किसी विवाद को सुलझाने के दोनों देशों के बीच कमिश्नरों की बैठक होती है और मुद्दे को सुलझाया जाता है. अगर मुद्दा उससे भी बड़ा हो तो सरकारें इसमें हस्तक्षेप करते हैं. लेकिन जब दोनों देशों के बीच ही जल संधि को लेकर कोई विवाद पैदा होता है तो इसके लिए किसी तटस्थ विशेषज्ञ की मदद या फिर कोर्ट ऑफ़ ऑर्बिट्रेशन में जाने का प्रावधान रखा गया है.

अब क्या करेगा पाकिस्तान?

भारत सरकार के एक्शन से पाकिस्तान बौखलाया हुआ है और इस फैसले को गैरकानूनी बता रहा है. पाकिस्तान अब इस फैसले के खिलाफ वर्ल्ड बैंक का दरवाजा खटखटा सकता है क्योंकि उसी की मध्यस्थ्ता से दोनों देशों के बीच सिंधु जल समझौता हुआ था. हालांकि भारत के पास दलील है कि समझौते को स्थाई तौर पर रद्द नहीं किया गया है, लेकिन आतंक के खिलाफ एक्शन न लेने की वजह से फिलहाल के लिए संधि रोक दी गई है. 

पाकिस्तान की सरकार भी भारत के इस कदम से सन्नाटे में आ गई है क्योंकि उसे अंदाजा नहीं था कि भारत इतना बड़ा कदम उठा सकता है. पाकिस्तान के अड़ंगे की वजह से ही पाकल दुल, रतले और किरु जैसे भारत के बड़े हाइड्रोलिक प्रोजेक्ट अधर में थे, ऐसे में अब समझौता रुकने की वजह से भारत बिना किसी सलाह-मशविरा के परियोजनाओं के काम में तेजी ला सकता है. 

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