पाकिस्तान का खौफ बढ़ने वाला है. पहले राफेल फाइटर जेट की वजह से. अब उसमें खतरनाक ब्रह्मोस-एनजी (नेक्स्ट जेनरेशन) लगने वाली है. भारतीय वायुसेना (IAF) और नौसेना अपने राफेल विमानों में स्वदेशी ब्रह्मोस-एनजी (नेक्स्ट जेनरेशन) सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल लगाने जा रही है.
राफेल बनाने वाली कंपनी डैसो एविएशन ने भारत की स्वदेशी हथियार प्रणालियों के एकीकरण की मांग को स्वीकार कर लिया है, जो राफेल की भारत में भूमिका को और मजबूत करेगा. 2026 में ब्रह्मोस-एनजी के परीक्षण और लखनऊ में नई उत्पादन सेंटर के साथ शुरू होगा. यह मिसाइल राफेल, सुखोई-30 MKI और तेजस Mk1A के लिए भारत की हवाई ताकत का आधार बनेगी.
ब्रह्मोस-एनजी: हल्का, तेज, और घातक
ब्रह्मोस-एनजी, ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल का हल्का और कॉम्पैक्ट संस्करण है. इस मिसाइल की प्रमुख विशेषताएं हैं…
वजन और आकार: 1.3-1.4 टन वजन, 6 मीटर लंबाई, और 50 सेमी व्यास—यह अपने पूर्ववर्ती से 50% हल्की और 3 मीटर छोटी है.
यह भी पढ़ें: हथियारों की गीदड़भभकी… खून बहाने की धमकी काम न आई, चीन-ईरान-तुर्की से मदद भी काम नहीं आई… तो PAK ने अमेरिका से लगाई गुहार
रेंज और गति: 290 किमी की रेंज और 3.5 मैक (4170 km/hr) की गति, जो इसे घातक बनाती है.
बहु-मंच उपयोग: हवा, जमीन, समुद्र और पनडुब्बी से लॉन्च करने की क्षमता.
उन्नत तकनीक: कम रडार क्रॉस-सेक्शन (RCS) और AESA रडार के साथ उन्नत सीकर, जो इसे स्टील्थ और सटीक बनाता है.
भारतीय वायुसेना ने 8,000 करोड़ रुपये की लागत से 400 ब्रह्मोस-एनजी मिसाइलों को खरीदने की योजना बनाई है. जिनकी डिलीवरी उत्पादन शुरू होने के पांच साल के भीतर होगी.
राफेल में स्वदेशी एकीकरण: एक रणनीतिक कदम
डैसो एविएशन का स्वदेशी हथियार प्रणालियों को राफेल-M (नौसेना) और राफेल C (वायुसेना) में लगाने का समझौता भारत की लंबे समय से चली आ रही चिंताओं को दूर करता है. पहले राफेल फ्रांसीसी हथियार जैसे 70 किमी रेंज वाली एक्सोसेट मिसाइल पर निर्भर था. ब्रह्मोस-एनजी की 290 किमी रेंज और सुपरसोनिक गति राफेल को दुश्मन के जहाजों और जमीन पर लक्ष्यों को सुरक्षित दूरी से निशाना बनाने की क्षमता देगी, जो अधिकांश वायु रक्षा प्रणालियों की पहुंच से बाहर है.
यह कदम भारत की रणनीति के अनुरूप है, जो राफेल बेड़े और घातक बनाएगी. नौसेना के 26 राफेल-M विमान INS विक्रमादित्य और INS विक्रांत से संचालित होंगे, जबकि वायुसेना के 36 राफेल C विमान अंबाला और हाशिमारा हवाई अड्डों पर तैनात हैं.
यह भी पढ़ें: राफेल से क्यों खौफ में है PAK? जनरल फैला रहे अफवाह… पाकिस्तानी सर्च कर रहे तबाही की पावर
एकीकरण की प्रक्रिया और समयसीमा
ब्रह्मोस-एनजी का एकीकरण सबसे पहले सुखोई-30 MKI पर होगा, जिसके लिए 2025 के अंत या 2026 की शुरुआत में परीक्षण निर्धारित हैं. सुखोई-30 MKI अपनी भारी पेलोड क्षमता के कारण, तीन ब्रह्मोस-एनजी मिसाइलें ले जा सकता है. यह हवा से लॉन्च होने वाली मिसाइल का टेस्टबेड होगा.
सफल परीक्षणों के बाद इसे तेजस Mk1A और राफेल बेड़े में लगाया जाएगा. तेजस Mk1A जिसके 83 विमानों की डिलीवरी 2025 से शुरू होगी, एक ब्रह्मोस-एनजी ले जाएगा. राफेल शुरू में एक मिसाइल ले जाएगा, जिसे भविष्य में दो मिसाइलों तक बढ़ाया जा सकता है.
लखनऊ में उत्पादन सुविधा
ब्रह्मोस-एनजी का उत्पादन उत्तर प्रदेश के लखनऊ में 200 एकड़ में बन रही नई सुविधा में होगा. 2026 में चालू होने वाली यह फैक्ट्री सालाना 80-100 मिसाइलों का उत्पादन करेगी, जो घरेलू जरूरतों और निर्यात प्रतिबद्धताओं जैसे कि फिलीपींस को हालिया डिलीवरी को पूरा करेगी.
यह भी पढ़ें: चार महीने बाद उड़ेंगे सेना और वायुसेना के ALH Dhruv हेलीकॉप्टर, जनवरी में हादसे के बाद रोकी गई थी उड़ान
चुनौतियां और समाधान
राफेल में ब्रह्मोस-एनजी का एकीकरण तकनीकी रूप से जटिल हो सकता है. सुखोई-30 MKI में ब्रह्मोस-A का एकीकरण 2017 में पूरा हुआ. मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल और सॉफ्टवेयर संशोधनों के कारण देरी का शिकार हुआ था. राफेल के फ्रांसीसी सिस्टम और इंडो-रूसी मिसाइल के बीच संचार प्रोटोकॉल में अंतर एक चुनौती हो सकता है. इसके समाधान के लिए मध्यस्थ हार्डवेयर विकसित करने का प्रस्ताव है, जो डेटा संचार को सुगम बनाएगा.
रणनीतिक महत्व
ब्रह्मोस-एनजी का राफेल में एकीकरण भारत की रक्षा रणनीति में एक गेम-चेंजर साबित होगा. यह न केवल राफेल की मारक क्षमता को बढ़ाएगा, बल्कि भारत को क्षेत्रीय खतरों, विशेष रूप से हिंद महासागर और दक्षिण चीन सागर में चीन और पाकिस्तान की आक्रामकता का जवाब देने में सक्षम बनाएगा.
Leave a Reply