Pahalgam Attack – ‘मां को बचाने के लिए मैंने खुद को…’, पहलगाम आतंकी हमले में पिता को खोने वाले युवक ने सुनाई आपबीती – Pahalgam terror attack survivorn says Put myself in fathers shoes rescue my mother ntc

पहलगाम आतंकी हमले में महाराष्ट्र के डोंबिवली एक नागरिक संजय लेले भी मारे गए थे. वे अपनी पत्नी और बच्चे के साथ कश्मीर घूमने के लिए गए हुए थे. आतंकी हमला होने के बाद संजय के बेटे, हर्षल लेले को एक ही काम करना था, अपनी मां को बचाना और उन्हें सुरक्षित जगह पर पहुंचाना. जम्मू-कश्मीर में हुए जघन्य हमले के पांच दिन बाद ठाणे जिले के डोंबिवली के 20 वर्षीय हर्षल उस पल को याद करते हुए बताते हैं कि उनकी जिंदगी ने एक बुरा मोड़ ले लिया. 

जम्मू-कश्मीर की छुट्टियां मनाने गए लेले और उनके दो परिवारों के लिए दुखद साबित हुआ. हर्षल के पिता संजय लेले (52), हेमंत जोशी (45) और अतुल मोने (43), जो चचेरे भाई थे, 22 अप्रैल को हुए हमले में मारे गए. हर्षल ने याद करते हुए कहा, “हमने अभी लंच खत्म ही किया था कि हमें गोलियों की आवाज सुनाई दी.”

‘मेरी जिम्मेदारी थी…’

हमले के दौरान हर्षल को गोली लगी और एक गोली उसके पास से निकलकर उसके पिता को जा लगी. उन्होंने कहा, “मेरी जिम्मेदारी थी कि मैं अपनी मां को बचाऊं. मैंने खुद को अपने पिता की जगह पर रखकर सोचा. उनका पहला विचार मां को बचाना होता, इसलिए मैंने वही किया.” उन्होंने कहा कि बंदूकधारियों ने पुरुषों को उनके परिवारों के सामने गोली मारी और महिलाएं और बच्चे बेसुध हो गए।

हर्षल ने याद करते हुए कहा, “मेरी मां को हल्का लकवा है, इसलिए उन्हें चलने में दिक्कत होती थी. मेरे चचेरे भाई ध्रुव जोशी और मैंने उन्हें उबड़-खाबड़ रास्ते से गुजरते हुए बीच रास्ते में उठाया. वह कई जगहों पर फिसल गईं और चोटिल हो गईं, लेकिन हमारे पास कोई विकल्प नहीं था.” 

‘तीन घंटे से ज्यादा वक्त लगा…’

हर्षल ने आगे बताया कि आखिरकार उन्हें घुड़सवार मिल गया, जो परिवारों को घास के मैदान में लेकर आया था और वह अपनी मां को अपनी पीठ पर लादकर उन्हें बाहर ले आया. सुरक्षित जगह तक पहुंचने में उन्हें तीन घंटे से ज्यादा वक्त लगा. 

उन्होंने कहा, “जब हम बेस पर पहुंचे और CRPF के जवानों को घास के मैदान की ओर जाते देखा, तो हमें उम्मीद थी कि मेरे पिता और चाचाओं को जिंदा बाहर निकाल लिया जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ.” 

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अपने पिता संजय को खोने से हर्षल को खालीपन का एहसास हो रहा है. उन्होंने कहा, “वह हमेशा मुझसे कहते थे कि कुछ भी करने से पहले 10 बार सोचो, चाहे कुछ भी हो जाए. जब हमला मेरी आंखों के सामने हो रहा था, तो मैं केवल यही सोचा कि मेरे पिता उस स्थिति में क्या करते और मैंने वही किया. वह मुझे हमेशा शांत रहने और किसी भी स्थिति में विनम्रता से बात करने के लिए कहते थे. 

हर्षल ने बताया कि उनके पिता क्रिकेट के शौकीन थे और रविवार को मैच खेलते थे. वह खेल से उदाहरण देकर मुझे समस्याओं और स्थितियों को समझाते थे, यही हमारा बंधन था.

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