यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का शताब्दी वर्ष है. संघ प्रमुख मोहन भागवत पिछले कई दिनों से अलीगढ़ प्रवास पर थे, लेकिन शनिवार की सुबह उन्होंने कुछ ऐसा किया जिसने सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया.
शनिवार सुबह मोहन भागवत अचानक अलीगढ़ के एक मोहल्ले में पहुंचे, एक घर का डोर बेल बजाया और पूछा, “क्या यह बाल स्वयंसेवक का घर है?” घरवालों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब उन्होंने अपने घर के दरवाजे पर संघ प्रमुख मोहन भागवत को देखा.
दरअसल, यह बाल स्वयंसेवक विभोर शर्मा का घर है, जिसके पिता विभाकर शर्मा स्वयं संघ के स्वयंसेवक हैं और नियमित रूप से शाखा में जाते हैं.
महज 6 साल का विभोर लाठी चलाने में दक्ष है. संघ की शाखा में लाठी चलाने की विशेष शिक्षा दी जाती है, जो शाखा का अभिन्न अंग माना जाता है. विभोर कई घंटों तक लाठी भांज सकता है.
मोहन भागवत स्वयं कभी संघ के शारीरिक प्रमुख रहे हैं और लाठी चलाने में महारथी स्वयंसेवक थे. जब उन्हें विभोर के बारे में जानकारी मिली, तो वे स्वयं उससे मिलने उसके घर पहुंच गए.
दरअसल, आरएसएस ने अपने शताब्दी वर्ष के अवसर पर अपनी शाखाओं को लेकर कई लक्ष्य निर्धारित किए हैं: हर बस्ती में शाखा लगाना, हर घर तक संघ को पहुंचाना, और अधिक से अधिक स्वयंसेवक तैयार करना, ताकि 100 साल बाद भी नए स्वयंसेवक संघ को युवा रख सकें. यदि 100 साल के आरएसएस को युवा रखना है, तो बाल स्वयंसेवक ही इसकी रीढ़ होंगे, जो इसे अगली पीढ़ी तक ले जाएंगे. इस बाल स्वयंसेवक के घर जाकर संघ प्रमुख ने यही संदेश दिया कि सियासत नहीं, शाखा ही संघ की प्राथमिकता है.
एक तरफ आरएसएस अपने शताब्दी वर्ष की तैयारी में जुटा है, तो दूसरी तरफ वह अपनी शाखाओं में अधिक से अधिक लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहा है. मोहन भागवत का एक बाल स्वयंसेवक के घर जाना यह दर्शाता है कि भले ही वे संघ प्रमुख हों, लेकिन एक शाखा और एक स्वयंसेवक के प्रति संगठन कितना संजीदा है.
मोहन भागवत ने इस अवसर का उपयोग यह संदेश देने के लिए किया कि संघ के लिए सबसे महत्वपूर्ण सीढ़ी यानी शाखा है.
संघ प्रमुख ने विभोर के घर लगभग आधा घंटा बिताया, उनके परिवार से बातचीत की और अपना आशीर्वाद दिया. विभोर के पिता विभाकर शर्मा स्वयं स्वयंसेवक हैं, शाखा लगाते हैं, और आईटी क्षेत्र में काम कर चुके हैं. उन्होंने अपने परिवार में संघ के संस्कारों को गहराई से स्थापित किया है.
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