कश्मीर में धर्म पूछकर आतंकियों ने टूरिस्टों को मारा है. कश्मीर के लिए इसमें कुछ नया नहीं है. कश्मीर भारतवर्ष का एक मात्र भूभाग है जो धर्म के आधार पर ऐथनिक क्लिंजिंग के सबसे भयावह दौर से गुजरा है. भारत में धर्म के नाम पर जो अत्याचार कश्मीर में हुआ है वह कहीं नहीं हुआ है. देश के दूसरे हिस्सों में इस्लामी राज का फैलाव सुल्तानों और शहंशाहों के विस्तारवादी राजनीति का हिस्सा रहा है पर कश्मीर में तो इस्लाम का फैलाव ही हिंदुओं के साथ धोखे और उनपर हुए जबरन अत्याचार का रहा है.
कश्मीर देश का वह भूभाग है जहां पर शासकों ने हीं हिंदुओं के खात्मे के लिए ताकत और विश्वासघात की राज-नीति तैयार की. क्या कश्मीर के मिसलमान अपने उपर हुए जुल्मों का इतिहास पढ़कर इस्लामिक कट्टरपंथियों से नफरत कर सकते हैं. जिस कश्मीर को मुहम्मद गौरी और मुहम्मद गजनवी नहीं जीत पाए वह इस्लामी आतंक का अड्डा कैसे बन गया है.
कश्मीर का डरावना इतिहास
1301 से लेकर 1320 तक हिंदुओं के आखिरी राजा सुहादेव का शासन था. कश्मीर का लोहारा वंश अपने सबसे दुर्बल काल से गुजर रहा था. कश्मीर के राजा सिम्हादेव का कत्ल उसी के गुलाम ने कर दिया था और ऐसे में सिम्हादेव का भाई सुहादेव मजबूरी का शासक बना था. कश्मीर के कमजोर होने की वजह तुर्क और मंगोल लुटेरे थे जो हिंदुकुश को पार कर चले आते थे और लूटकर चले जाते थे.
कश्मीर को कैसे मिला मुस्लिम शासक
जब कश्मीर में हिंदू शासन के दौरान आज के तुर्कमेनिस्तान इलाके से दुलाचा नाम के एक लुटेरे ने तुर्क और मंगोल फौजियों को लेकर कश्मीर पर हमला कर दिया. कश्मीर राजा सुहादेव डरकर श्रीनगर छोड़कर किश्तवाड़ भाग गया. 8 महीने तक कश्मीर को लूटने के बाद दुलाचा ठंड पड़ने से पहले कश्मीर छोड़कर चला गया. इस दौरान लद्दाख का सरदार रिनचन लार घाटी में अपनी टुकड़ी लेकर काफी दिनों से डेरा डाले हुए था.
हालात को देखकर रिनचन ने कश्मीर को अपने कब्जे में कर लिया. वह बौद्ध था मगर कश्मीर की जनता हिंदू थे. कश्मीर पर कब्जा करने के बाद वह बौद्ध धर्म छोड़कर हिंदू बनना चाहता था, ताकि लंबे समय तक कश्मीर पर राज कर सके. कुछ इतिहासकारों का कहना है कि उसने हिंदू बनने की बहुत कोशिश की, मगर कश्मीर के ब्राह्मणों ने उसे नहीं अपनाया. इसके लिए उसने सुहादेव की पत्नी और मंत्री रामचंद्र की बेटी कोटा रानी से शादी भी की.
हिंदू राजा सुहादेव पहले से हीं अपने दरबार में स्वात घाटी से परिवार लेकर आए शाह मीर को जगह दे रखी थी जो धूर्त और काईयां था.धूर्त शाह मीर ने कश्मीर में खुद को पार्थ यानी महाभारत के अर्जुन का वंशज बताकर कश्मीरी हिंदुओं और राजा के यहां अपनी जगह बना ली थी.बारमूला में जड़ जमाए शाह मीर ने सुहादेव के जाने के बाद रिनचन से करीबी बढ़ाई और दरबार में पकड़ मजबूत कर ली. उसने रिनचन को इस्लाम के प्रचारक बुलबुल शाह के संपर्क में लाकर इस्लाम धर्म ग्रहण करवा दिया. और इस तरह से जम्मू कश्मीर का पहला मुस्लिम शासक सुल्तान सदरूद्दीन के रूप में मिला.
कश्मीर में इस्लामी शासन की शुरूआत
इससे पहले तक कश्मीर में इस्लाम का नामोनिशान नहीं था. रिनचन ने अपना नाम सुल्तान सदरूद्दीन रखने के बाद बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन कराए. इस काम में उसका सहयोग शाह मीर ने किया. 1323 में जब रिनचन की मौत हो गई. सुल्तान सदर-उद-दीन की मौत के बाद हिंदुओं ने वापस सत्ता अपने हाथ में ले ली और सुहादेव के भाई उदयनदेव को राजा बना दिया. इसके साथ ही सुल्तान सदरूद्दीन से पैदा हुए कोटा रानी के बेटे हैदर को भी मौत के घाट उतार दिया गया. उदयन देव ने भी कोटा रानी से शादी कर ली. इसबीच धूर्त शाह मीर कश्मीर का मंत्री बन बैठा. मगर एक बार फिर अचला नाम के हमलावर ने कश्मीर पर हमला किया तो इस बार उदयन देव भी अपने भाई की तरह डरकर श्रीनगर छोड़कर जम्मू भाग गया.
1338 में जब वह कश्मीर वापस लौटा तब तक उसका मंत्री मीर शाह मजबूत हो चुका था और उसने उदयन देव को मारकर कश्मीर की गद्दी हासिल कर ली. और इस तरह से वह कश्मीर का पहला सुल्तान शमसुद्दीन बन गया. उसने कोटा रानी से भी जबरन शादी करने की कोशिश की मगर कोटा रानी ने छुरा घोंप कर आत्महत्या कर ली. इस तरह से कश्मीर को पहला मुस्लिम सुल्तान वंश शाह वंश के रूप में मिला, जिसने करीब 300 से ज्यादा साल तक कश्मीर पर राज किया.
हिंदुओं पर अत्याचार की इंतेहा
आगे चलकर इसी शाह वंश में 1389 से 1416 छठा सुल्तान सिकंदर सुल्तान हुआ, जिसने बड़े पैमाने पर हिंदुओं का कत्लेआम किया और उन्हें मुसलमान बनाया. कश्मीर के सारे हिंदू, बौद्ध मंदिर और मूर्तियां तक तोड़ डालीं. इसीलिए इसका नाम बुतशिकन पड़ा था. इस्लामी इतिहास में कोई पहला शासक था जिसके नाम में बुतशीकन पड़ गया यानी मूर्तियां तोड़नेवाला.
तलवार के बल पर पूरे कश्मीर में हिंदुओं को मुसलमान बनाने का काम शुरू हुआ. जिसने इंकार किया वह मौत के घाट उतार दिया गया. पूरे कश्मीर में कठोर शरीया कानून लागू हुआ जो देश में सुल्तानों के शासन के बावजूद कहीं नही लागू था. कश्मीर के ज्यादातर हिंदू डर के मारे मुसलमान बन गए और बड़ी संख्या में अपनी धर्म बचाने वाले कश्मीर घाटी छोड़कर भाग गए. और इस तरह से 27 वर्षों तक किसी भी भारतीय भूभाग पर अबतक का सबसे बड़ा जातीय नरसंहार और एथनिक क्ल्निंजिंग हुआ.
हिंदुओं के खिलाफ ठगी की साजिश
इतिहास ऐसा दस्तावेज है कि कोई भी अपना पक्ष रखने के लिए सहुलियत के हिसाब से अपना नायक खोज लेता है. जो सिकंदर बुतशीकन के अत्याचारी इस्लामी कश्मीर को छुपाना चाहते हैं वह उसके बटे जैनुअल आबेदिन को कश्मीर के इतिहास का नायक बताकर मुस्लिम और हिंदू एकता का कश्मीरियत का पाठ पढ़ाया जाता है. जैनुअल आबेदिन नरमपंथियों का हीरो है. उसने अपने पिता के किए पर हिंदुओं से माफी मांगी और कश्मीर छोड़कर गए कश्मीरी ब्राह्मणों को वापस लाकर बसाना शुरू किया. जबरन धर्म परिवर्तन पर रोक लगाई. संस्कृत भाषा को बढ़ावा दिया. कश्मीर में इस्लामी सूफी काल की शुरूआत भी जैनुअल आबेदिन के काल में ही हुई. हिंदू और मुस्लिम नरमपंथी आज भी गंगा-जमुनी तहजीब के नाम पर जैनुअल आबेदिन के कब्र पर जाते हैं.
मगर कई इतिहासकार मानते हैं कि यह कश्मीरी ब्राह्मणों के साथ धोखा हुआ.वहां पर जाने के बाद लालच देकर, टैक्स में छूट देकर, बड़े पदों पर बैठाने के नाम पर जैनुअल आबेदिन के शासन काल में बड़ी संख्या में बचे हुए और घाटी में लौटे हुए कश्मीरी ब्राह्मणों का धर्म परिवर्तन किया गया. 1585 तक जबतक मुगल शासक अकबर ने कश्मीर पर कब्जा नहीं किया यह क्रम चलता रहा.
मुगलों से लेकर अबतक पहली बार कश्मीर को दिल्ली दरबार के अंदर अकबर लेकर आया मगर इसे लाहौर सूबे में शामिल किया जिसकी वजह इस्लाम धर्म के साथ-साथ पहली बार कश्मीरी संस्कृति का भी खात्मा होना शुरू हो गया. इस तरह से मुगल शासन में कश्मीर की कश्मीरीयत भी जाती रही और इस्लामी संस्कृति ने जड़ जमा लिया.
मुगल शासक मोहम्मद शाह रंगीला के समय सिखों ने कश्मीर पर कब्जा किया और फिर एंग्लों-सिख वार में जीत के बाद अंग्रेजों ने कब्जा किया. अंग्रेज ने इसे अपने पास रखने के बाजाए 50 लाख में डोगरा शासकों को बेच दिया जिस वंश के आखिरी राजा आजादी के समय हरि सिंह थे. आजादी के बाद कश्मीर का मामला फिर से उलझा तो आजतक सुलझ नहीं पाया है.
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