सभी दलों में आंबेडकर की सियासत की दावेदारी लेकिन उनका अपना परिवार क्यों रह गया पीछे? देखिए उनकी पूरी फैमिली ट्री – dr bhimrao ambedkar family tree political legacy dalit politics prakash ambedkar vba rpi ntcpbt

संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर की जयंती के मौके पर सियासी दलों में खुद को उनकी सियासी लकीर का फकीर साबित करने की होड़ सी दिख रही है. मायावती की अगुवाई वाली बहुजन समाज पार्टी, एडवोकेट चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी से लेकर लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) तक, दलित पार्टियों के साथ ही भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस जैसे दल भी डॉक्टर आंबेडकर की सियासी विरासत पर दावेदारी कर रहे हैं.

इस होड़ में जयंत चौधरी की अगुवाई वाला राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) भी पीछे नहीं है और सदस्यता अभियान की शुरुआत के लिए आंबेडकर जयंती को ही चुना. डॉक्टर आंबेडकर की सियासी विरासत पर सबकी दावेदारी के बीच आखिरकार उनका अपना परिवार कहां है? आंबेडकर परिवार सियासत में क्यों पीछे रह गया?

सियासत में कहां आंबेडकर के वारिस?

डॉक्टर आंबेडकर के पुत्र यशवंतराव आंबेडकर की पहचान एक सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार के रूप में रही. वह सियासत में भी सक्रिय रहे और बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया के दूसरे अध्यक्ष बनाए गए. 1977 में यशवंतराव का निधन हो गया और इसके बाद उनकी पत्नी मीराबाई बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया की तीसरी अध्यक्ष बनाई गई थीं. बाबा साहेब के परिवार की तीसरी पीढ़ी के प्रकाश आंबेडकर ने सियासत में परिवार का झंडा बुलंद किया. दो लोकसभा और एक बार राज्यसभा सदस्य रहे प्रकाश आंबेडकर भारतीय बहुजन महासंघ के संस्थापक अध्यक्ष हैं. उन्होंने वंचित बहुजन आघाड़ी (वीबीए) नाम से राजनीतिक दल भी बनाया हुआ है जो महाराष्ट्र में सक्रिय है.

प्रकाश आंबेडकर के इकलौते पुत्र सुजत आंबेडकर भी राजनीति में हैं. पत्रकारिता की पढ़ाई कर चुके सुजत अपने स्टाइलिश लुक को लेकर चर्चा में रहते हैं. प्रकाश आंबेडकर के भाई आनंदराज आंबेडकर भी राजनीति में हैं. उन्होंने रिपब्लिकन सेना नाम से अपनी पार्टी बना रखी है. बाबा साहेब की दूसरी पत्नी सविता भी डॉक्टर आंबेडकर की बनाई आरपीआई के माध्यम से सियासत में सक्रिय रहीं. बाबा साहेब के पुत्र यशवंत से लेकर पोते और परपोते तक, परिवार के सदस्य राजनीति में सक्रिय रहे लेकिन प्रकाश आंबेडकर को छोड़ दें तो कोई भी मजबूत मौजूदगी दर्ज नहीं करा पाया.

bhimrao ambedkar

महाराष्ट्र विधानसभा के पिछले चुनाव (2024) में प्रकाश आंबेडकर की पार्टी वीबीए ने 200 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. वीबीए का खाता भी नहीं खुल सका था और पार्टी केवल एक सीट पर दूसरे स्थान पर रही थी. 54 सीटों पर वीबीए के उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहे थे. वोट शेयर के लिहाज से भी देखें तो पार्टी 2.2 फीसदी वोट ही हासिल कर सकी थी. 

क्यों पीछे रह गया आंबेडकर परिवार?

सवाल उठता है कि जिस शख्स के नाम को आधार बनाकर सियासी दल सफलता की सीढ़िया चढ़ते चले गए, बहुजन समाज पार्टी जैसा दल यूपी जैसे बड़े राज्य की सत्ता के शीर्ष पर अपने दम पहुंचने में कामयाब रहा, उन्हीं डॉक्टर आंबेडकर का खुद अपना परिवार क्यों पीछे रह गया? आंबेडकर परिवार की सियासी कर्मभूमि महाराष्ट्र ही रहा. सूबे में करीब 13 फीसदी आबादी दलित वर्ग की है लेकिन ये महार और मातंग में बंटे हुए हैं. प्रकाश आंबेडकर और उनकी पार्टी का बेस वोटर भी यही वर्ग है जहां बाबा साहब की वैचारिक विरासत के दावे के साथ रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया भी सक्रिय है.

यह भी पढ़ें: 13% वोट, 3 फोकस्ड लोकल पार्टियां और नेशनल दलों का एजेंडा… फिर भी आंबेडकर के महाराष्ट्र में दलित पॉलिटिक्स हाशिए पर क्यों है?

महार पॉलिटिक्स की पिच पर कई दलों की मौजूदगी ने भी आंबेडकर परिवार की राजनीति को प्रभावित किया है. आंबेडकर परिवार के सदस्यों के सियासत में पीछे रह जाने के पीछे यह भी कहा जाता है कि बड़ी वजह उनका महार जाति के बाहर अन्य दलित-पिछड़ा जातियों में अपना बेस नहीं बना पाना भी है. दलित मतदाताओं के बीच एक विभाजन बौद्ध और हिंदू का भी है. बौद्ध धर्म को मानने वाले दलित मतदाताओं के बीच आंबेडकर परिवार की पकड़ मजबूत है लेकिन हिंदू धर्म को मानने वाले दलितों के बीच ऐसा नहीं है. 

यह भी पढ़ें: Bhimrao Ambedkar Birth Anniversary: बाबा साहेब आंबेडकर इन तीन लोगों को मानते थे अपना गुरु, अपनी आत्मकथा में किया है जिक्र

आंबेडकर परिवार के सियासत में पीछे रहने की एक वजह बौद्ध पॉलिटिक्स और दलित चेतना के लिए जमीन पर दलितों के बीच पहुंचने की जगह लेख पर अधिक निर्भरता को भी बताया जाता है. महाराष्ट्र में देश की कुल आबादी के करीब 77 फीसदी बौद्ध निवास करते हैं लेकिन सूबे की जनसंख्या के लिहाज से देखें तो इनकी भागीदारी करीब 6 फीसदी ही पहुंचती है. प्रकाश आंबेडकर की पार्टी का नारा भी है- नहीं भी हो संख्या भारी, लेकर रहेंगे हिस्सेदारी.

यह भी पढ़ें: MP में भीमराव आंबेडकर के नाम पर बना नया वन्यजीव अभयारण्य, सरकार ने किया ऐलान

आंबेडकर परिवार ने दलित और बौद्ध आंदोलनों को तरजीह दी और यह भी एक वजह रही कि परिवार सियासत में पीछे रह गया. बुद्धिस्ट सोसाइटी के अध्यक्ष पद पर ज्यादातर आंबेडकर परिवार के सदस्यों का ही काबिज रहना भी यही संकेत करता है. सोसाइटी के वर्तमान अध्यक्ष राजरत्न भी डॉक्टर आंबेडकर के भाई के परपोते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *