‘सम्मान मांगा था, अपमान मिला…’, ये कहते हुए राज ठाकरे ने 20 साल पहले छोड़ दी थी शिवसेना, जानें- उद्धव से क्यों हुए थे मतभेद – Raj thackeray revolts against cousin uddhav thackeray shiv sena split story ntcpan

महाराष्ट्र की सियासत में 20 साल बाद फिर से राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के एक होने के कयास लगाए जा रहे हैं. पहले एमएनएस चीफ राज ठाकरे ने मतभेद भुलाने की बात कही और फिर इसके जवाब में शिवसेना (UBT) के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भी महाराष्ट्र के हितों का हवाला देते हुए मामूली झगड़ों को पीछे छोड़ने के संकेत दिए हैं. उद्धव के चचेरे भाई राज ठाकरे ने साल 2005 में शिवसेना से अलग होने का फैसला किया था और फिर 2006 में अपनी पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएमएस) का गठन किया.

‘सम्मान मांगा था, अपमान मिला’

तारीख-18 दिसंबर 2005, जगह- शिवाजी पार्क जिमखाना. राज ठाकरे ने यहां एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई थी जिसमें उन्होंने शिवसेना से अलग होने का ऐलान किया था. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में राज ठाकरे ने कहा कि उन्होंने सम्मान मांगा था, लेकिन उन्हें सिर्फ अपमान और बेइज्जती मिली. असल में राज ठाकरे को ही शिवसेना संस्थापक बाला साहेब ठाकरे का राजनीतिक उत्तराधिकारी माना जाता था क्योंकि वह पार्टी में उद्धव से ज्यादा सक्रिय थे और उनकी छवि भी अपने चाचा बालासाहेब की तरह एक तेजतर्रार नेता की थी.

ये भी पढ़ें: BMC के चुनाव, ठाणे-मुंबई में प्रभाव… 20 साल बाद ठाकरे ब्रदर्स के हाथ मिलाने से क्या बदलेंगे समीकरण?

राज ठाकरे ने शिवसेना से अलग होने का फैसला अचानक नहीं लिया, बल्कि इससे पीछे की वजह दोनों भाइयों के बीच लगातार बढ़ते मतभेद और अधिकारों की लड़ाई रही, जो 1995 से शुरू हुई थी. वैसे तो शिवसेना में बाल ठाकरे के सबसे करीबी राज ठाकरे हुआ करते थे. बाल ठाकरे के ही तेवर, वैसे ही खुलकर बोलने की हिम्मत और वह हर खूबी, जो राज ठाकरे को बाल ठाकरे का उत्तराधिकारी बना सकती थी. तब तक उद्धव ठाकरे राजनीति में उतने एक्टिव नहीं थे. 

पार्टी में उद्धव का कद बढ़ने लगा

फिर साल 1995 में पार्टी का काम उद्धव देखने लगे और पार्टी के फैसलों में बाल ठाकरे की मदद करने लगे. इसके बाद 1997 में हुए बीएमसी के चुनाव में राज ठाकरे की नाराजगी को दरकिनार कर ज्यादातर टिकट उद्धव ठाकरे की मर्जी से बांटे गए. शिवसेना के बीएमसी चुनाव जीतने से उद्धव का दबदबा पार्टी पर मजबूत होता चला गया और राज ठाकरे किनारे होते चले गए. इसी वजह से दोनों भाइयों के बीच प्रतिस्पर्धा और मतभेद की खाई और गहरी हो गई. 

साल 2003 में राज ठाकरे ने महाबलेश्वर में उद्धव ठाकरे को कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने का प्रस्ताव दिया. यह कई लोगों के लिए चौंकाने वाला फैसला था. हालांकि, इस प्रस्ताव को हर किसी ने स्वीकार कर लिया और उद्धव ठाकरे शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष बन गए. आखिर में राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़कर 2006 में अपनी पार्टी एमएनएस बनाई. हालांकि गठन के इतने साल बाद भी पूरे महाराष्ट्र पर मनसे अपना प्रभाव नहीं छोड़ सकी और मुंबई-नासिक तक ही पार्टी का जनाधार सिमटकर रह गया. 

raj and uddhav
उद्धव और राज ठाकरे (फाइल फोटो)

राज और उद्धव के सामने चुनौती

नई पार्टी बनने के बाद जब मनसे ने 2009 में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा तो 13 सीटों पर जीत दर्ज की. इस चुनाव में उन्हें ‘मराठी मानुष’ के मुद्दे को भुनाया. लेकिन 2014 और 2019 में एक-एक सीट पर सिमट गई. पिछले साल विधानसभा चुनाव में मनसे को एक भी सीट नहीं मिली. पार्टी राजनीतिक रूप से संघर्ष कर रही है और राज ठाकरे राजनीतिक अस्तित्व के लिए लड़ रहे हैं.

ये भी पढ़ें: ‘राज ठाकरे को जवाब देने से पहले क्या उद्धव ठाकरे ने पत्नी रश्मि से पूछा?’, बीजेपी नेता नितेश राणे का तंज

दूसरी ओर उद्धव ठाकरे को तब बड़ा झटका लगा जब एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली बगावत ने उनकी सरकार गिरा दी और शिवसेना में फूट पड़ गई. हालात और भी बदतर हो गए, उन्होंने अपनी पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न भी गंवा दिया. मज़बूत वापसी करते हुए उन्होंने पिछले साल लोकसभा चुनावों में 9 सीटें जीतने के लिए शिवसेना (UBT) नाम की अपनी नई पार्टी का नेतृत्व किया, जिससे 2024 के बाद के राज्य चुनावों में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद जगी. लेकिन विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन निराशाजनक रहा. शिवसेना (UBT) ने पिछले चुनाव में 92 सीटों पर चुनाव लड़कर 20 सीटें जीतीं, जबकि ठाकरे के कट्टर प्रतिद्वंद्वी एकनाथ शिंदे की शिवसेना को 57 सीटों में जीत मिली.

पहले भी मिले साथ आने के संकेत

राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे परिवारिक कार्यक्रमों में भले ही साथ दिखते हों, लेकिन राजनीतिक तौर पर अभी तक मंच शेयर नहीं कर पाए हैं. साल 2012 में बाल ठाकरे के निधन के बाद उद्धव ने राज ठाकरे के साथ सुलह के संकेत दिए थे. लेकिन आखिर में नतीजा नहीं निकला. इसी तरह जब 2019 में उद्धव के बेटे आदित्य वर्ली से पहली बार विधानसभा चुनाव लड़े तो राज ठाकरे ने उस सीट से अपना प्रत्याशी नहीं दिया और पहली बार ठाकरे परिवार को कोई सदस्य चुनाव लड़ा और जीत भी दर्ज की. लेकिन उद्धव ने राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे के लिए उतना बड़ा दिल नहीं दिखाया और 2024 में माहिम से अपना उम्मीदवार उतारकर उन्हें शिकस्त दिलाई.

मौजूदा दौर में महाराष्ट्र की सियासत में ठाकरे परिवार संघर्ष कर रहा है. बीजेपी, एनसीपी और एकनाथ शिंदे की शिवसेना मिलकर राज्य की सत्ता पर काबिज हैं. उद्धव ठाकरे के पिता ने जो पार्टी बनाई थी, वो अब दो हिस्सों में बंट चुकी है. राज ठाकरे की पार्टी 18 साल बाद भी राज्य में जनाधार हासिल करने में विफल रही है. ऐसे में दोनों भाइयों की ओर से मतभेद भुलाकर एक साथ आने की बातें सियासी माहौल में हलचल जरूर पैदा करती हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *